शनिवार, 12 सितंबर 2020

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन (Non-Aligned Movement Summit)

 गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलन

(Non-Aligned Movement Summit)

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्म 1961 के बैलग्रेड सम्मेलन में हुआ। इसमें अधिकतर नवोदित स्वतन्त्र विकासशील देश शामिल हैं। 1975 में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मन्त्रियों के लीमा सम्मेलन में विकासशील देशों को आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए संहति कोष की स्थापना करने की स्वीकृति हुई। यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग का महत्वपूर्ण प्रयास था। 1976 में गुटनिरपेक्ष देशों के कोलम्बो शिखर सम्मेलन में बहुराष्ट्रीय औषधीय कम्पनियों पर निर्भरता की बजाय परस्पर सहयोग की योजना तैयार करने पर बल दिया। इसमें कृषि, खाद्यान्न तथा संचार-अवरोधों के मामलों पर भी नए उपाय तलाशने की बात कही गई। सबसे अधिक महत्वपूर्ण सुझाव तृतीय विश्व बैंक की स्थापना के बारे में दिया गया। इस तरह इस सम्मेलन में दक्षिण-दक्षिण सहयोग में वृद्धि करने वाले महत्वपूर्ण सूझाव दिए गए। 1986 के हरारे सम्मेलन में भी उत्तर-दक्षिण संवाद की बजाय दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर बल दिया गया। इसमें विकासशील देशों में आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए एक आयोग गठित करने का निर्णय लिया गया। दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर गुट-निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्रियों की एक बैठक जून, 1987 में भी हुई। इसमें विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने व गतिशील बनाने के लिए नए ढंग प्रयोग करने पर जोर दिया गया। इसमें विकासशील राष्ट्रों की सामूहिक आत्म-निर्भरता की भावना को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया गया। सितम्बर 1989 के बेलग्रेड सम्मेलन में भारत के प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने उत्तर-दक्षिण सहयोग में वृद्धि करने के लिए संस्थागत ढांचे में बदलाव लाने की बात कही। इस सम्मेलन में आपसी पूंजी निवेश प्रवाह तथा आपस में प्राथमिकता के आधार पर तकनीकी हस्तांतरण को मुख्य मुद्दा बताया गया। इसके बाद 1992 व 1995 में गुटनिरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रालय की 1996.97 की रिपार्ट में कहा गया कि कुछ के पास पर्याप्त धन राशि है तथा कुछ के पास अच्छी तकनीक है। इसलिए उनके लिए यही हितकर होगा कि वे उत्तर के देशों की तरफ भागने की अपेक्षा आपस में ही पूंजी व तकनीक का आदान-प्रदान करें। इससे दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। सम्मेलन में आपसी सहयोग बढाने पर बल दिया गया और विकसित देशों पर उन की निर्भरता कम होगी। इस प्रकार गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने भी दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाने की दिशा में एक सुदृढ़ मंच का काम किया।

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