शनिवार, 12 सितंबर 2020

समूह-77 (G-77)

 समूह-77 (G-77)

सभी नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बने, उनमें से 2/3 सदस्य अफ्रीका से थे। इन देशों ने अपने आप को G-77 कहना शुरू कर दिया। इस संगठन की स्थापना U.N.O के तत्वावधान में 1964 में ही की गई। इसके अधिकतर सदस्य तृतीय विश्व के देश हैं। अपने समान आर्थिक हितों के कारण ये देश नई विश्व अर्थव्यवस्था की स्थापना की बात करते हैं। इसकी 1982 की नई दिल्ली में बैठक के अंतर्गत 44 विकासशील राष्ट्रों के सैकड़ों प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें सार्वभौम अर्थव्यवस्था में हो रहे ह्रास पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गई और औद्योगिक देशों के संरक्षणवाद की भी व्यापक निन्दा की गई। इसमें कृषि में आत्म-निर्भरता, विश्व बैंक (ऊर्जा) में परस्पर सम्बन्ध का निर्माण, तकनीकी सहयोग के लिए बहुराष्ट्रीय वित्तीय सुविधा का निर्माण आदि बातों पर ध्यान दिया गया। इसमें सामूहिक आत्म-निर्भरता के लिए सहयोग को महत्व दिया गया।

G-77 का एक अंतरंग (Internal) समूह भी है जिसे G-24 के नाम से जाना जाता है। यह विकासशील देशों के विभिन्न मुद्दों पर बातचीत करता है। इसके वित्त मन्त्रियों की 49वीं बैठक (वॉशिंगटन, 1993) में मुद्रा मामलों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया गया। यह G-77 के साथ मिलकर ही कार्य करता है। G-77 में 2000 में हुए हवाना सम्मेलन में विकासशील देशों के विकास मुद्दों को प्राथमिकता देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आवश्यकता महसूस की गई। इसमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से प्रार्थना की गई कि उसे ऐसे प्रयास करने चाहिए जिनसे विकासशील देशों के आर्थिक विकास में आई रुकावटों का निराकरण हो। इन रुकावटों को हटाने के लिए पारस्परिक सांझेदारी व स्वतन्त्रताओं के आधार पर विकसित तथा विकासशील देशों की वार्ता का आह्नान किया गया। आज G-77 में ऐसे देश हैं जो साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रह चुके हैं। यह संगठन एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के ऐसे देशों की एकता व सहयोग का प्रतीक है। ये देश समुद्री कानून, शस्त्र नियंत्रण, अणु ऊर्जा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार आदि मुद्दों पर लिए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय निर्णयों को विकासशील देशों के हितों की तरफ मोड़ना चाहते हैं ताकि विकासशील देश भी आर्थिक विकास की धारा में शामिल हो सकें। इस प्रकार कहा जा सकता है कि G-77 दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत बनाने का अच्छा प्रयास है।

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