शनिवार, 12 सितंबर 2020

जी-15 (G-15)

 जी-15 (G-15)

G-15 विकासशील देशों का एक समूह है। यह तृतीय विश्व के विकास के लिए एक आन्दोलन का रूप धारण करता जा रहा है। इसका पहला शिखर सम्मेलन 1 जून 1990 को कुआलालम्पुर में हुआ। इसका उद्देश्य दक्षिण-दक्षिण सहयोग की कार्यवाही में गति लाना था। इस सम्मेलन में चिकित्सा और सुगन्धित पौधों के लिए एक जिंस बैंक की स्थापना तथा सौर ऊर्जा, सिंचाई पम्प, छोटे रेफ्रीजरेटर, कोर्रस और डायर्स के वास्ते सौर ऊर्जा की कार्यप्रणाली का विकास-इन दो परियोजनाओं पर आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया। G-15 के दूसरे शिखर सम्मेलन (काराकास, 1991) में गरीब देशों को अमीर देशों के विरुद्ध एकजुट रहने का आह्नान किया। इसमें इस बात पर बल दिया गया कि वे ऐसी आर्थिक नीतियां बनाए कि उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था का विकास करने के अवसर प्राप्त हो सकें। इसमें बाहरी ऋणों के विषय में सह-उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के आधार पर ठोस उपाय करने पर भी जोर दिया गया। इसके बाद G-15 के डकार सम्मेलन (1992) में भी नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के मुद्दे पर सामूहिक कार्यवाही पर बल दिया गया। G-15 के पहले शिखर सम्मेलन की योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए सात नई परियोजनाओं को इस सम्मेलन में शामिल किया गया। भारत ने G-15 को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए अफ्रीका में एक पेशेवर प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने का भी आग्रह किया गया। इसके बाद G-15 का चौथा शिखर सम्मेलन दिसम्बर, 1993 में नई दिल्ली में हुआ। इसमें अधिकतर शासनाध्यक्ष शामिल नहीं हो सके। इसलिए यह अधिक सफल नहीं रहा। इसके पश्चात G-15 के अर्जेन्टीना सम्मेलन (1995) में विकासशील देशों के बीच व्यापार और निवेश के उदारीकरण, सरलीकरण और संवर्द्धन तथा तकनीक के हस्तांतरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। G-15 के हरारे शिखर सम्मेलन (1996) में भी व्यापारिक मुद्दे ही प्रमुख रहे। इसमें विकसित देशों के श्रम मानकों का विरोध किया गया। G-15 के इस सम्मेलन की संयुक्त विज्ञप्ति में यह कहा गया कि विकसित देशों के दबाव में नहीं आना चाहिए। भारत ने कहा कि श्रम मुद्दे व्यापार से संबंधित न होने के कारण विश्व व्यापार संगठन से बाहर ही रखे जाने चाहिए। विकासशील देशों के समूह G-15 के सातवें सम्मेलन (कुआलालम्पुर, 1997) में 16वें सदस्य के रूप में केन्या को प्रवेश दिया गया। इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास, विकासशील देशों की चिन्ताओं के मसले और उनसे निपटने की नीतियों पर विचार किया गया। इसमें विशेष रूप से निवेश और तकनीकी सहयोग का विस्तार करके दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत बनाने पर बल दिया गया। G-15 के नौवें शिखर सम्मेलन (जमैका, 2000) में वैश्वीकरण की प्रक्रिया में उचित परिवर्तनों की मांग उठाई गई। इस तरह G-15 के सम्मेलनों द्वारा विकासशील देशों में आपसी सहयोग व समन्वय की भावना का विकास किया गया है। अपने सीमित समय में ही G-15 एक शक्तिशाली कार्यक्रम के रूप में उभरा है। यह निरन्तर दक्षिण-दक्षिण संवाद को आगे बढ़ाते हुए विकासशील देशों में आपसी तकनीकी सहयोग व पूंजी निवेश द्वारा आत्मनिर्भरता की स्थापना के प्रयास करने को कृतसंकल्प है।

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