विश्वभारती विश्वविद्यालय
Vishwabharati
University
विश्वभारती
विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के
शान्तिनिकेतन नगर में की। यह भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है।
अनेक स्नातक और परास्नातक संस्थान इससे संबद्ध हैं।
शान्ति निकेतन
के संस्थापक रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 1861 ई. में
कलकत्ता में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर
ने 1863 ई. में अपनी साधना हेतु
कलकत्ते के निकट बोलपुर नामक ग्राम में एक आश्रम की स्थापना की जिसका नाम `शांति-निकेतन' रखा गया। जिस स्थान पर वे साधना किया
करते थे वहां एक संगमरमर की शिला पर बंगला भाषा में अंकित है--`तिनि आमार प्राणेद आराम, मनेर आनन्द, आत्मार शांति।' 1909 ई. में
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसी स्थान पर बालकों की शिक्षा हेतु एक प्रयोगात्मक
विद्यालय स्थापित किया जो प्रारम्भ में `ब्रह्म विद्यालय,'
बाद में `शान्ति निकेतन' तथा 1921 ई. में `विश्व भारती' विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात हुआ।
टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे।
शांतिनिकेतन का
जन्म
गुरु-शिष्य
सम्बन्धों पर विचार करते हुए टैगोर ने आधुनिक किशोर की समस्याओं का सहृदयता से
अध्ययन किया और अपना दृढ़ मत व्यक्त किया कि शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त
अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए जेल और मिलिट्री की बैरकों का कठोर अनुशासन काम
नहीं दे सकता,
यह तो अध्यापकों की प्रतिष्ठा पर भी आघात होगा। विद्यार्थियों से यह
आशा करना ही गलत है वे अध्यापकों से वैसा ही व्यवहार करें जैसा किसी सामन्त के
दरबारी करते हैं। टैगोर का विश्वास था कि शिक्षा में आदान-प्रदान की प्रक्रिया यदि
पारस्परिक सम्मान की भावना से युक्त हो तो अनुशासन की समस्या स्वयमेव सुलझ जाएगी।
ज्ञान का समाज
के हर वर्ग में फैलाना अतीत की शिक्षा का एक आदर्श था। धर्म ग्रन्थों और
महाकाव्यों के अंशों का वाचन, भक्त ध्रुव, सीता वनवास,
दानवीर कर्ण, सत्यवादी हरिशचन्द्र, आदि नाटक (जात्रा) इसी उद्देश्य से किए जाते थे। यह उत्तम प्रकार की समाज
शिक्षा थी। पर अंग्रेजी शिक्षा का लाभ अधिकांश नगरों तक ही सीमित रहा और शेष देश
के असंख्य गाँव अशिक्षा, रोग और क्षय के अन्धकार में विलीन
होते गए। इस स्थिति को सुधारना चाहिए।
विश्व भारती की
स्थापना
टैगोर शान्ति
निकेतन विद्यालय की स्थापना से ही संतुष्ट नहीं थे। उनका विचार था कि एक ऐसे
शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए, जहाँ पूर्व और पश्चिम को मिलाया
जा सके। सन् 1916 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विदेशों से भेजे गए एक पत्र में लिखा
था-
"शान्ति
निकेतन को समस्त जातिगत तथा भौगोलिक बन्धनों से अलग हटाना होगा, यही मेरे मन में है। समस्त मानव-जाति की विजय-ध्वजा यहीं गड़ेगी। पृथ्वी
के स्वादेशिक अभिमान के बंधन को छिन्न-भिन्न करना ही मेरे जीवन का शेष कार्य
रहेगा।"
अपने इस
उद्देश्य की प्राप्ति के लिए टैगोर ने 1921 में शान्तिनिकेतन में 'यत्र विश्वम भवत्येकनीडम' (सारा विश्व एक घर है) के
नए आदर्श वाक्य के साथ विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। तभी से यह संस्था
एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में ख्याति प्राप्त कर रही है।
उद्देश्य
(1) विभिन्न
दृष्टिकोणों से सत्य के विभिन्न रूपों की प्राप्ति के लिए मानव मस्तिष्क का अध्ययन
करना।
(2) प्राचीन
संस्कृति में निहित आधारभूत एकता के अध्ययन एवं शोध द्वारा उनमें परस्पर घनिष्ठ
सम्बन्ध स्थापित करना।
(3) एशिया में
व्याप्त जीवन के प्रति दृष्टिकोण एवं विचारों के आधार पर पश्चिम के देशों से
संपर्क बढ़ाना।
(4) पूर्व एवं
पश्चिम में निकट संपर्क स्थापित कर विश्व शान्ति की संभावनाओं को विचारों के
स्वतंत्र आदान-प्रदान द्वारा दृढ़ बनाना।
(5) इन आदर्शों
को ध्यान में रखते हुए शान्ति निकेतन में एक ऐसे सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना
करना जहाँ धर्म,
साहित्य, इतिहास, विज्ञान
एवं हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य
सभ्यताओं की कला का अध्ययन और उनमें शोधकार्य, पश्चिमी
संस्कृति के साथ, आध्यात्मिक विकास के अनुकूल सादगी के
वातावरण में किया जाए।
विभाग
(1) पाठ भवन -
इसमें स्कूल सर्टिफिकेट (मैट्रिक परीक्षा) उत्तीर्ण करने के लिए शिक्षा दी जाती है
तथा 6 से 12 वर्ष की आयु के बालकों को प्रवेश दिया जाता है। शिक्षा का माध्यम
बंगाली है।
(2) शिक्षा भवन
- इसमें सीनियर स्कूल सर्टिफिकेट (इन्टर परीक्षा) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए
शिक्षा दी जाती है। छात्रों की आवश्यकताओं पर व्यक्तिगत ध्यान तथा सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य सहगामी क्रियाओं की प्रचुर मात्रा में व्यवस्था शिक्षा
भवन की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
(3) विद्या भवन
- इसमें 3 वर्ष की बी.ए. (आनर्स) पाठ्यक्रम की तैयारी कराई जाती है। परीक्षा के
विषय संस्कृत,
बंगाली, हिन्दी, उड़िया,
अंग्रेजी, अर्थशास्त्र और दर्शन है। भवन में
दो वर्ष के एमए. पाठ्यक्रम की व्यवस्था संस्कृत, प्राचीन
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति, बंगाली, हिन्दी,
उड़िया, अंग्रेजी तथा दर्शन में है। छात्र इन
विषयों में अनुसंधान कार्य भी कर सकते हैं। दो वर्षीय सार्टिफिकेट्स कोर्स,
तत्पश्चात एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स का अतिरिक्त प्रबन्ध संस्कृत,
बंगाली, हिन्दी, उड़िया,
चीनी, जापानी, तिब्बती,
फ्रेंच, जर्मन, अरबी और
अंग्रेजी भाषाओं में किया गया है।
(4) विनय भवन -
यह एक अध्यापक प्रशिक्षण कॉलेज है जिसमें एक वर्षीय बी.एड. पाठ्यक्रम की व्यवस्था
है। प्रशिक्षण काल में शिल्प तथा अन्य व्यावहारिक एवं रचनात्मक क्रियाओं की शिक्षा
का भी प्रबन्ध किया जाता है।
(5) कला भवन -
इसमें ड्राइंग,
पेंटिंग, मूर्ति कला, कढ़ाई
आदि के अतिरिक्त काष्ठ कला, कलात्मक चर्म-कार्य तथा अन्य
शिल्पों की शिक्षा भी दी जाती है। कला भवन में कलात्मक शिल्पों में दो वर्षीय
सर्टिफिकेट कोर्स तथा मैट्रिक परीक्षा के पश्चात 4 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की
व्यवस्था है।
(6) संगीत भवन
- इसमें संगीत में (क) 3 वर्षीय इंटरमीडिएट परीक्षा का पाठ्यक्रम, (ख) तत्पश्चात रवीन्द्र संगीत, हिन्दुस्तानी संगीत,
सितार, मणिपुरी नृत्य, कत्थक,
कथाकली और भरतनाट्यम में 2 वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम की व्यवस्था है।
(7) चीन भवन -
इसमें भारतीय छात्रों को चीन सम्बन्धी और चीनी छात्रों को भारतीय संस्कृति की
शिक्षा दी जाती है।
(8) हिन्दी भवन
- इसमें हिन्दी भाषा की शिक्षा तथा अनुसंधान कार्य करने की सुविधाएं है।
(9)
हिन्द-तिब्बती शिक्षालय - इसमें तिब्बती भाषा की शिक्षा का प्रबन्ध है।
(10) श्री
निकेतन - इसमें ग्राम्य जीवन की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इस संस्था का
मुख्य उद्देश्य छात्रों को ग्राम्य जीवन से परिचित करवाना तथा ग्राम्य समस्याओं के
समाधान की शक्ति पैदा करना है। श्री निकेतन में ग्रामीण बालकों को माध्यमिक स्तर
की शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा सत्र की स्थापना की गई है। घरेलू
उद्योग-धन्धों के प्रशिक्षण का कार्य शिल्प सदन द्वारा किया जाता है।
इसके अतिरिक्त 'शिक्षा चर्चा' नामक एक संस्था और है जो बेसिक अध्यापक
प्रशिक्षण विद्यालय के रूप में कार्य करती है तथा भारत सरकार द्वारा स्थापित
ग्रामीण महाविद्यालय उच्च ग्रामीण शिक्षा की व्यवस्था करती है।
विश्व भारती की
विशेषताएँ
(1) स्वयं
गुरुदेव रवीन्द्र ने विश्व भारती की विशेषता का उल्लेख इन शब्दों में किया -
"विश्व
भारती भारत का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ भारत की बौद्धिक सम्पदा सभी के लिए
उपलब्ध है। अपनी संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व दूसरों को देने में और दूसरों की
संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व अपनाने में भारत सदा से उदार रहा है। विश्व भारती भारत
की इस महत्वपूर्ण परम्परा को स्वीकार करती है।"
(2) कोई छात्र
किसी एक विभाग में प्रवेश पाने के पश्चात् किसी दूसरे विभाग में भी बिना कोई
अतिरिक्त शुल्क दिए शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
(3) विदेशी
छात्रों को नियमित छात्र के रूप में या अस्थाई छात्र के रूप में भी प्रवेश दिया जा
सकता है।
(4) ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्ति कला, चर्म
कार्य, कढ़ाई, नृत्य, संगीत आदि ललित कलाओं में तथा चीनी और जापानी भाषाओं में शान्ति निकेतन ने
विशेष ख्याति प्राप्त की है। इन क्षेत्रों में शान्ति निकेतन का योगदान विशिष्ट
है।
(5) खुले
मैदानों में या वृक्षों के नीचे प्रकृति के सान्निध्य में और स्वतंत्र वातावरण में
शिक्षा दी जाती है।
(6) गुरुशिष्य
के आदर्श सम्बन्धों को पुन: स्थापित किया जा रहा है।
(7)
विश्वविद्यालय का पुस्तकालय बहुत प्रसिद्ध है जहाँ लगभग दो लाख पुस्तकों का संग्रह
है।
विश्व भारती
महर्षि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी विचारों का मूर्तमान स्वरूप है। यहाँ
खुले गगन के नीचे वृक्षों व कुंजों के झुरमुटों में पृथ्वी पर बैठकर देश-विदेशों
से आकर असंख्य विद्यार्थी धर्म, दर्शन, साहित्य एवं कला का उच्च
अध्ययन करते हैं। प्राच्य व पाश्चात्य संस्कृतियों के सम्मिश्रण में इस संस्था ने
बड़ा योग दिया है। सात्विक व सादा जीवन, प्रकृति से संपर्क,
प्राचीन व आधुनिक शिक्षा पद्धतियों का एकीकरण आध्यात्मिक व भौतिक
शिक्षा पर समान बल एवं सांस्कृतिक उत्थान इत्यादि इस संस्था की अपनी विशेषताएँ
हैं। भारत की शिक्षा के इतिहास में यह एक नूतन व महान परीक्षण माना जाता है।
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