श्रीनिवास रामानुजन् अयंगर
Srinivasa
Ramanujan Iyengar
श्रीनिवास रामानुजन्
अयंगर (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें
आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष
प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या
सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न
केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान
किया।
ये बचपन से ही
विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के
3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके
हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर
बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है।
हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य
से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना
की गई है।
आरंभिक जीवनकाल
रामानुजन का
जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयंबटूर के ईरोड नामके
गांव में हुआ था। वह पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनकी की माता का नाम
कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। इनका बचपन मुख्यतः कुंभकोणम
में बीता था जो कि अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। बचपन में रामानुजन
का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। यह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी
नहीं सीख पाए थे। जब इतनी बड़ी आयु तक जब रामानुजन ने बोलना आरंभ नहीं किया तो
सबको चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं हैं। बाद के वर्षों में जब उन्होंने
विद्यालय में प्रवेश लिया तो भी पारंपरिक शिक्षा में इनका कभी भी मन नहीं लगा।
रामानुजन ने दस वर्षों की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक
अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल पहुंचे। रामानुजन को
प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे।
जैसे कि-संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की
दूरी कितनी होती है? रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था।
इनका सामान्य से कुछ अधिक स्थूल शरीर और जिज्ञासा से चमकती आखें इन्हें एक अलग ही
पहचान देती थीं। इनके सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई इनसे
नाराज हो ही नहीं सकता था। विद्यालय में इनकी प्रतिभा ने दूसरे विद्यार्थियों और
शिक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर दिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज के स्तर
के गणित को पढ़ लिया था। एक बार इनके विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने यह भी कहा था
कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते
हैं। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे
अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए
प्रवेश भी मिला।
आगे एक परेशानी
आई। रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना बढ़ गया था कि वे दूसरे विषयों पर ध्यान
ही नहीं देते थे। यहां तक की वे इतिहास, जीव विज्ञान की कक्षाओं में भी
गणित के प्रश्नों को हल किया करते थे। नतीजा यह हुआ कि ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा
में वे गणित को छोड़ कर बाकी सभी विषयों में फेल हो गए और परिणामस्वरूप उनको
छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई। एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से
छात्रवृत्ति भी नहीं मिल रही थी। रामानुजन के लिए यह बड़ा ही कठिन समय था। घर की
स्थिति सुधारने के लिए इन्होने गणित के कुछ ट्यूशन तथा खाते-बही का काम भी किया।
कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और
अनुत्तीर्ण हो गए। और इसी के साथ इनके पारंपरिक शिक्षा की इतिश्री हो गई।
औपचारिक शिक्षा
की समाप्ति और संघर्ष का समय
विद्यालय
छोड़ने के बाद का पांच वर्षों का समय इनके लिए बहुत हताशा भरा था। भारत इस समय
परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। ऐसे समय में
रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम
करने का मौका। बस उनका ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति अगाध श्रद्धा ने
उन्हें कर्तव्य मार्ग पर चलने के लिए सदैव प्रेरित किया। नामगिरी देवी रामानुजन के
परिवार की ईष्ट देवी थीं। उनके प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया
और वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे। इस समय
रामानुजन को ट्यूशन से कुल पांच रूपये मासिक मिलते थे और इसी में गुजारा होता था।
रामानुजन का यह जीवन काल बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। इन्हें हमेशा अपने भरण-पोषण
के लिए और अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और अनेक लोगों से
असफल याचना भी करनी पड़ी।
विवाह और गणित
साधना
वर्ष 1908 में
इनके माता पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया विवाह हो जाने के बाद
अब इनके लिए सब कुछ भूल कर गणित में डूबना संभव नहीं था। अतः वे नौकरी की तलाश में
मद्रास आए। बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण न होने की वजह से इन्हें नौकरी नहीं मिली
और उनका स्वास्थ्य भी बुरी तरह गिर गया। अब डॉक्टर की सलाह पर इन्हें वापस अपने घर
कुंभकोणम लौटना पड़ा। बीमारी से ठीक होने के बाद वे वापस मद्रास आए और फिर से
नौकरी की तलाश शुरू कर दी। ये जब भी किसी से मिलते थे तो उसे अपना एक रजिस्टर
दिखाते थे। इस रजिस्टर में इनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। इसी
समय किसी के कहने पर रामानुजन वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर
से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की
प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये
मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक
साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था
"बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन
मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था। यहां एक साल पूरा होने पर इन्होने मद्रास
पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ
ज्यादा नहीं था और यहां इन्हें अपने गणित के लिए पर्याप्त समय मिलता था। यहां पर
रामानुजन रात भर जाग कर नए-नए गणित के सूत्र लिखा करते थे और फिर थोड़ी देर तक
आराम कर के फिर दफ्तर के लिए निकल जाते थे। रामानुजन गणित के शोधों को स्लेट पर
लिखते थे। और बाद में उसे एक रजिस्टर में लिख लेते थे। रात को रामानुजन के स्लेट
और खड़िए की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती थी।
प्रोफेसर
हार्डी के साथ पत्रव्यावहार
इस समय भारतीय
और पश्चिमी रहन सहन में एक बड़ी दूरी थी और इस वजह से सामान्यतः भारतीयों को
अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपने बातों को प्रस्तुत करने में काफी संकोच होता
था। इधर स्थिति कुछ ऐसी थी कि बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता लिए शोध कार्य
को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। इस समय रामानुजन के पुराने शुभचिंतक इनके काम आए
और इन लोगों ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के
पास भेजा। पर यहां इन्हें कुछ विशेष सहायता नहीं मिली लेकिन एक लाभ यह हुआ कि लोग
रामानुजन को थोड़ा बहुत जानने लगे थे। इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत
के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उनका ध्यान लंदन के ही प्रोफेसर
हार्डी की तरफ गया। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से
एक थे। और अपने सख्त स्वभाव और अनुशासन प्रियता के कारण जाने जाते थे। प्रोफेसर
हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी
के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। अब रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से
पत्रव्यवहार आरंभ हुआ। अब यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ
जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जिस
तरह से एक जौहरी हीरे की पहचान करता है और उसे तराश कर चमका देता है, रामानुजन के जीवन में वैसा ही कुछ स्थान प्रोफेसर हार्डी का है। प्रोफेसर
हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और
प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा
जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया। प्रोफेसर हार्डी ने उस समय के
विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों
को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन
उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।
आरंभ में रामानुजन
ने जब अपने किए गए शोधकार्य को प्रोफेसर हार्डी के पास भेजा तो पहले उन्हें भी
पूरा समझ में नहीं आया। जब उन्होंने अपने मित्र गणितज्ञों से सलाह ली तो वे इस
निष्कर्ष पर पहुंचे कि रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक दुर्लभ व्यक्तित्व है और
इनके द्वारा किए गए कार्य को ठीक से समझने और उसमें आगे शोध के लिए उन्हें
इंग्लैंड आना चाहिए। अतः उन्होने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया।
विदेश गमन
कुछ व्यक्तिगत
कारणों और धन की कमी के कारण रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज के आमंत्रण
को अस्वीकार कर दिया। प्रोफेसर हार्डी को इससे निराशा हुई लेकिन उन्होनें किसी भी
तरह से रामानुजन को वहां बुलाने का निश्चय किया। इसी समय रामानुजन को मद्रास
विश्वविद्यालय में शोध वृत्ति मिल गई थी जिससे उनका जीवन कुछ सरल हो गया और उनको
शोधकार्य के लिए पूरा समय भी मिलने लगा था। इसी बीच एक लंबे पत्रव्यवहार के बाद
धीरे-धीरे प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए सहमत कर लिया।
प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता
भी मिल गई। रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये
सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था।
रामानुजन ने
लंदन की धरती पर कदम रखा। वहां प्रोफेसर हार्डी ने उनके लिए पहले से व्ववस्था की
हुई थी अतः इन्हें कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। इंग्लैण्ड में रामानुजन को बस
थोड़ी परेशानी थी और इसका कारण था उनका शर्मीला, शांत स्वभाव और शुद्ध सात्विक
जीवनचर्या। अपने पूरे इंग्लैण्ड प्रवास में वे अधिकांशतः अपना भोजन स्वयं बनाते
थे। इंग्लैण्ड की इस यात्रा से उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने
प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष
शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली। लेकिन
वहां की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य
खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। उस समय क्षय रोग की कोई दवा नहीं
होती थी और रोगी को सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था। रामानुजन को भी कुछ दिनों तक
वहां रहना पड़ा। वहां इस समय भी यह गणित के सूत्रों में नई नई कल्पनाएं किया करते
थे।
रॉयल सोसाइटी
की सदस्यता
इसके बाद वहां रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो
नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसाइटी
की सदस्यता मिलना एक बहुत बड़ी बात थी। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में
इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। पूरे भारत में उनके शुभचिंतकों ने
उत्सव मनाया और सभाएं की। रॉयल
सोसाइटी की सदस्यता के बाद यह ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी
बने। अब ऐसा लग रहा था कि सब कुछ बहुत अच्छी जगह पर जा रहा है। लेकिन
रामानुजन का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था और अंत में डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें
वापस भारत लौटना पड़ा। भारत आने पर इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की
नौकरी मिल गई। और रामानुजन अध्यापन और शोध कार्य में पुनः रम गए।
स्वदेश आगमन
भारत लौटने पर
भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया और हालत गंभीर होती जा रही थी। इस बीमारी की
दशा में भी इन्होने मॉक
थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र लिखा। रामानुजन द्वारा प्रतिपादित इस फलन का उपयोग गणित ही
नहीं बल्कि चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है।
मृत्यु
इनका गिरता
स्वास्थ्य सबके लिए चिंता का विषय बन गया और यहां तक की अब डॉक्टरों ने भीजवाब दे
दिया था। अंत में रामानुजन के विदा की घड़ी आ ही गई। 26 अप्रैल 1920 के प्रातः काल
में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन
की आयु मात्र 33 वर्ष थी। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। पूरे
देश विदेश में जिसने भी रामानुजन की मृत्यु का समाचार सुना वहीं स्तब्ध हो गया।
रामानुजन की
कार्यशैली और शोध
रामानुजन और
इनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए
हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की
अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया। इनका उनका वह पुराना
रजिस्टर जिस पर वे अपने प्रमेय और सूत्रों को लिखा करते थे 1976 में अचानक
ट्रिनीटी कॉलेज के पुस्तकालय में मिला। करीब एक सौ पन्नों का यह रजिस्टर आज भी
वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। इस रजिस्टर को बाद में रामानुजन की नोट
बुक के नाम से जाना गया। मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा इसका
प्रकाशन भी किया गया है। रामानुजन के शोधों की तरह उनके गणित में काम करने की शैली
भी विचित्र थी। वे कभी कभी आधी रात को सोते से जाग कर स्लेट पर गणित से सूत्र
लिखने लगते थे और फिर सो जाते थे। इस तरह ऐसा लगता था कि वे सपने में भी गणित के
प्रश्न हल कर रहे हों। रामानुजन के नाम के साथ ही उनकी कुलदेवी का भी नाम लिया
जाता है। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों
को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। रामानुजन के कार्य करने की एक
विशेषता थी। पहले वे गणित का कोई नया सूत्र या प्रमेंय पहले लिख देते थे लेकिन
उसकी उपपत्ति पर उतना ध्यान नहीं देते थे। इसके बारे में पूछे जाने पर वे कहते थे
कि यह सूत्र उन्हें नामगिरी देवी की कृपा से प्राप्त हुए हैं। रामानुजन का
आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए
किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल
विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते
थे कि "मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक
विचार न मिलते हों।”
गणितीय कार्य
एवं उपलब्धियाँ
रामानुजन ने
इंग्लैण्ड में पाँच वर्षों तक मुख्यतः संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में काम किया।
लोकप्रिय
संस्कृति में
द मैन हू नोवन
इन्फिनिटी एक 2015 की फिल्म है जो कनिगेल की किताब पर आधारित है। ब्रिटिश अभिनेता
देव पटेल ने रामानुजन का चित्रण किया।
रामानुजन के
जीवन पर आधारित एक इंडो-ब्रिटिश सहयोग वाली फिल्म रामानुजन को 2014 में स्वतंत्र
फिल्म कंपनी कैम्फोर सिनेमा द्वारा रिलीज़ किया गया था। कलाकारों और चालक दल में
निर्देशक ज्ञान राजसेकरन, छायाकार सनी जोसेफ और संपादक बी लेनिन शामिल हैं।
भारतीय और अंग्रेजी सितारों में अभिनव वड्डी, सुहासिनी
मणिरत्नम, भामा, केविन मैकगोवन और
माइकल लिबर स्टार प्रमुख भूमिका में हैं।
एम. एन. कृष का
थ्रिलर उपन्यास द स्टरडियन ट्रेल रामानुजन और उनके आकस्मिक खोज को धर्म, गणित, वित्त और अर्थशास्त्र से जोड़ने की साजिश में
बुनता है।
2013 में
हार्डी और रामानुजन के बारे में इरा हपटमैन का एक नाटक, विभाजन पहली बार किया गया था।
ऑल्टर ईगो
प्रोडक्शंस द्वारा नाटक फर्स्ट क्लास मैन डेविड फ्रीमैन के फर्स्ट क्लास मैन पर
आधारित था। नाटक रामानुजन और हार्डी के साथ उनके जटिल और शिथिल रिश्ते के आसपास
है। 16 अक्टूबर 2011 को यह घोषणा की गई थी कि रोजर स्पोटिसवोडे, जो कि जेम्स बॉन्ड की फिल्म कल टु एवर डाइस के लिए जाने जाते हैं, सिद्धार्थ द्वारा अभिनीत फिल्म संस्करण पर काम कर रहे हैं।
डिस्पैचिंग
नंबर एक ब्रिटिश स्टेज प्रोडक्शन है जो कंपनी कंप्लिट द्वारा हार्डी और रामानुजन
के बीच संबंधों की पड़ताल करता है।
डेविड लेविट के
उपन्यास द इंडियन क्लर्क ने रामानुजन के हार्डी को लिखे पत्र के बाद की घटनाओं की
पड़ताल की।
गूगल ने अपनी
125 वीं जयंती पर अपने होम पेज पर अपने लोगो को डूडल बनाकर रामानुजन को सम्मानित
किया।
1997 की फिल्म
गुड विल हंटिंग में रामानुजन का उल्लेख किया गया था, एक दृश्य में जहां प्रोफेसर
गेराल्ड लेम्बो (स्टेलन स्कार्सगार्ड) ने सीन मजुइरे (रॉबिन विलियम्स) को विलन
हंटिंग (मैट डैमन) की प्रतिभा को रामानुजन से तुलना करके समझाते हैं।
आधी भारतीय
अभिनेत्री नवी रावत द्वारा निभाए गए टीवी शो Numb3rs पर
शानदार गणितज्ञ अमिता रामानुजन का नाम रामानुजन के लिए रखा गया है।
मरणोपरांत
मान्यता
उनकी मृत्यु के
वर्ष के बाद,
प्रकृति ने रामानुजन को अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और गणितज्ञों
के बीच "कैलेंडर ऑफ साइंटिफिक पायनियर्स" में सूचीबद्ध किया, जिन्होंने महानता हासिल की थी। रामानुजन के गृह राज्य तमिलनाडु में 22
दिसंबर (रामानुजन के जन्मदिन) को 'राज्य आईटी दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 1962, 2011, 2012 और 2016 में भारत सरकार द्वारा रामानुजन के चित्र वाले टिकट जारी किए
गए थे।
रामानुजन के
शताब्दी वर्ष के बाद से, उनके जन्मदिन, 22 दिसंबर को,
गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, कुंभकोणम, जहां उन्होंने अध्ययन किया, और चेन्नई में IIT
मद्रास में रामानुजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इंटरनेशनल
सेंटर फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स (ICTP) ने अंतर्राष्ट्रीय गणित संघ के सहयोग से विकासशील
देशों के युवा गणितज्ञों के लिए रामानुजन के नाम पर एक पुरस्कार बनाया है, जो पुरस्कार समिति के सदस्यों को नामित करता है।
तमिलनाडु में
स्थित एक निजी विश्वविद्यालय, सस्तरा विश्वविद्यालय ने गणित के एक क्षेत्र में
उत्कृष्ट योगदान के लिए 32 वर्ष से अधिक उम्र के गणितज्ञों को रामानुजन से
प्रभावित होने के लिए सालाना US $ 10,000 का सस्त्र रामानुजन
पुरस्कार दिया है।
विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग (UGC)
द्वारा नियुक्त एक समिति की सिफारिशों के आधार पर, भारत सरकार, SASTRA द्वारा स्थापित श्रीनिवास
रामानुजन केंद्र, को SASTRA विश्वविद्यालय
के दायरे में एक ऑफ-कैंपस केंद्र घोषित किया गया है।
रामानुजन के
जीवन और कार्य का एक संग्रहालय, रामानुजन गणित का घर भी इस परिसर में है।
सस्तरा ने
रामानुजन के कुमाबकोनम स्थित घर को खरीदा और पुनर्निर्मित किया।
भारत सरकार ने
22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया। भारत के 14वें और तात्कालिक
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 26 फरवरी 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में भारतीय
गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के समारोह के उद्घाटन
समारोह के दौरान 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाए जाने कि घोषणा की। इस अवसर
पर सिंह ने यह भी घोषणा की कि 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष के रूप में मनाया
जाएगा।
तब से, हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस स्कूलों, कॉलेजों और
विश्वविद्यालयों में कई शैक्षिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।
2017 में, आंध्र प्रदेश के चित्तूर में कुप्पम में रामानुजन मठ पार्क के खुलने से
दिन का महत्व और ज्यादा बढ़ गया।
रामानुजन आईटी
सिटी चेन्नई में एक सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) है
जो 2011 में बनाया गया था।
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