मंगलवार, 10 नवंबर 2020

अटल बिहारी वाजपेयी के सयुक्त राष्ट्र सभा में भाषण

 अटल बिहारी वाजपेयी के सयुक्त राष्ट्र सभा में भाषण

सबसे पहले सन 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के तौर पर संयुक्‍त राष्ट्र महासभा में हिंदी में अपना भाषण दिया था। आइये जानते हैं संयुक्‍त राष्ट्र महासभा में कब कब और किन किन नेताओं ने अपना भाषण हिंदी में दिया था।

लोकतंत्र और बुनियादी आजादी की कही थी बात

वर्ष 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में अटल जी विदेश मंत्री थे। वह देश के पहले नेता थे जिन्‍होंने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी भाषण दिया था। अटल जी यूएनजीए के 32वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार की बागडोर संभाले केवल छ: महीने हुए हैं, फिर भी इतने कम समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में जिस भय और आतंक के वातावरण ने लोगों को घेर लिया था वह अब खत्म हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिससे सुनिश्चित हो कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब कभी हनन नहीं होगा। अटल जी इस संबोधन को अपने जीवन का स्वर्णिम पल बताया करते थे।

वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा बताई

अटल जी ने कहा कि भारत में वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा बहुत पुरानी है। भारत में हमेशा से विश्वास करता रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। मैं यहां राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। यहां आम आमदी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से मापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज के लिए न्याय और गरिमा का आश्‍वासन देने में अग्रसर हैं। भारत सभी देशों से मैत्री संबंध चाहता है। भारत किसी भी मुल्‍क पर प्रभुत्व स्थापित नहीं करना चाहता है।

यूएनजीए को सात बार संबोधित किया

साल 1977 से 2003 तक बतौर विदेश मंत्री एवं प्रधानमंत्री अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सात बार संबोधित किया था। साल 1978 में वाजपेयी एक बार फिर बतौर विदेश मंत्री यूएनजीए में भाषण दिया था। तब उन्‍होंने कहा था कि भारत पाकिस्तान के साथ संबंधों के सामान्‍य होने की प्रक्रिया को मजबूत किए जाने की उम्मीद कर रहा है। यह क्षेत्र में न केवल स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए वरन लाभकारी द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है। साल 1978 में वाजपेयी ने बतौर विदेश मंत्री यूएनजीए में परमाणु निरस्त्रीकरण का मुद्दा उठाया था।

पाकिस्‍तान से बढ़ाया था दोस्‍ती का हाथ

वाजपेयी ने साल 1998 में बतौर प्रधानमंत्री यूएनजीए में अपना भाषण दिया था। तब उन्‍होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से न्यूयार्क में मुलाकात की थी और कहा था कि भारत ने यह दिखाया है कि लोकतंत्र की जड़ें एक विकासशील देश में स्थापित हो सकती हैं। इसके बाद साल 2000 में उन्‍होंने संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए आतंकवाद, परमाणु युद्ध के खतरे और भारत के परमाणु कार्यक्रम पर बात रखी थी।

पाकिस्‍तान को किया बेनकाब

साल 2001 में वाजपेयी ने यूएनजीए के 56वें सत्र को संबोधित करते हुए पाकिस्‍तान के चेहरे को दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया था। उन्‍होंने कहा था कि कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को प्रायोजित किया जा रहा है। सन रहे कि यह सत्र 9/11 हमले के बाद आयोजित हुआ था। साल 2002 में उन्‍होंने यूएनजीए के 57वें सत्र को संबोधित करते हुए एकबार फिर राष्‍ट्रो द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और दक्षिण एशिया में परमाणु हमले की धमकियों का मसला उठाया था। साल 2003 में वाजपेयी ने यूएनजीए में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र विवादों को रोकने या उनके समाधान में सफल नहीं रहा है।

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