विश्व मूक बधिर दिवस
(World Deaf-Dumb Day)
विश्व मूक बधिर दिवस कब मनाया जाता है?
हर वर्ष 26 सितम्बर को विश्व मूक बधिर दिवस मनाया जाता है, लेकिन वर्तमान में यह विश्व मूक बधिर सप्ताह के
रूप में अधिक जाना जाता है। यह सितम्बर के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है। विश्व
बधिर संघ (डब्ल्यूएफडी) ने वर्ष 1958 से ‘विश्व बधिर दिवस’ की शुरुआत की। इस दिन बधिरों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकारों के प्रति लोगों
में जागरूकता उत्पन्न करने के साथ-साथ समाज और देश में उनकी उपयोगिता के बारे में
भी बताया जाता है।
बधिर दिवस का उद्देश्य:
बधिर दिवस का उद्देश्य जो की अब एक साप्ताह के रूप में मनाया जाने लगा है, यह है कि बधिरों में स्वस्थ जीवन, स्वाभिमान, गरिमा इत्यादि भावनाओं को बाल मिल सके।
इसका एक उद्देश्य साधारण जनता तथा सबन्धित सत्ता का बधिरों की क्षमता, उपलब्धि इत्यादि की तरफ ध्यान आकर्षित करना भी
है। इसमें बधिरों के द्वारा किए गये कार्यों की सराहना की जाती है तथा उसे
प्रदर्शित किया जाता है।
कई संगठन जैसे स्कूल, कॉलेज, अन्न्या संस्थाएँ इसके लिए लोगों में बधिरपन हेतु जागरूकता
बढ़ाने का कारया करती हैं। कई आयोजन किए जाते हैं जो की बधिर की समस्याओं इत्यादि
से संबंध रखती है।
संचार की समस्या:
हालाँकि चिन्ह भाषा हज़ारों वर्षों से अस्तित्व में है फिर भी आज भी साधारण
लोगो से इस भाषा में संचार स्थापित करना एक चुनौती ही है। इस भाषा का अध्यन एवं
अध्यापन दोनो ही आती आवश्यक है जिससे की बधिरों की संस्कृति, समस्याएँ इत्यादि में संचार स्थापित किया जा
सके।
अंतरराष्ट्रीय बधिर साप्ताह:
सर्वप्रथम हुमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह दिवस बधिरों को सांत्वना
देने के लिए नहीं बल्कि उनके जीवन में एक परिवर्तन लाने के लिए मनाया जाता है।
बधिर होना किसी प्रकार की अपागता या कमज़ोरी नही है। सुनने की क्षमता में कमी
वाले लोग सही क्षमता वालों से ज़्यादा बुद्धिमान होते है बस अंतर इतना होता है कि
इनकी संचार का मIध्यम अलग होता है।
इनके लिए हम किसी भी प्रकार के नये आयोजन अपने क्षेत्रों में भी कर सकते है।
किसी भी प्रकार के सूचनाएँ जो इनसे संबंधित हो उसे सोशल मीडिया के द्वारा बता सकते
हैं कई लुभावने पोस्टर्स बना सकते है या कई अन्य कार्य भी किए जा सकते हैं।
बधिरों के ज्ञान
को बढ़ावा देते हुए कई वर्कशॉप या सभा का आयोजन कर सकते हैं जिसमें कि इनके द्वरा
प्रयोग की जाने वाली भाषा को साधारण जनता को भी बताया जा सके।
बधिरों को
तकनीकी से अवगत करा सकते हैं जिससे की उनका जीवन पहले से ज़्यादा सुगम व सरल हो
सके।
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