भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा
(Journey of The National Flag of India)
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की अभिकल्पना 1916 में
पिंगली वैंकैया ने की थी। आंध्र प्रदेश में जन्मे पिंगली वेंकैया ने ही सबसे पहले
देश का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया था। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में
पिंगली वैंकया महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे
रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। गांधी जी ने उन्हें इस
ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में
बाँधने का संकेत बने। दिसंबर 1923 में काकीनाड़ा में आयोजित
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान पिंगली वेंकैया ने दो
रंग वाले झंडे का प्रयोग किया जिसके बीचों-बीच चरखा था। उनका यह विचार गांधी जी को
बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का
सुझाव दिया।
अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में
गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम
में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है। काफ़ी तर्क वितर्क के बाद
भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन् 1931 में अखिल भारतीय
कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक
कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा
तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और
हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल
गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ
दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को
क्या रूप दिया जाए इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी
बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल
भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश
की। 15 अगस्त 1947 को तिरंगा हमारी
आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया। भारतीय
राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे
ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी
और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग
का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ
है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे का सफर
यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन
परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा
गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में
पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्ट्र में राजनैतिक
विकास को दर्शाता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस
प्रकार हैं:
पहला ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब
कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की
क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
दूसरा ध्वज को पेरिस में मैडम कामा
और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों
द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले
ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु
सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में
भी प्रदर्शित किया गया था।
1907 में भीकाजीकामा द्वारा फहराया गया बर्लिन समिति का ध्वज
तीसरा ध्वज 1917 में आया जब हमारे
राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने
घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल
और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के
अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर)
यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
इस ध्वज को 1917 में गघरेलू शासन आंदोलन के दौरान अपनाया गया
चौथा ध्वज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक
पिंगली वेंकैया ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल
और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व
करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के
लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ
चरखा होना चाहिए।
इस ध्वज को 1921 में गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया
पांचवा ध्वज वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक
यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए
एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए
चरखे के साथ था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व
नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
इस ध्वज को 1931 में अपनाया गया। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय सेना का संग्राम चिन्ह भी था।
छठा- राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने
इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद
इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर
सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज
अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।
भारत का वर्तमान तिरंगा ध्वज
महात्मा गांधी- “सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों
लोगों ने इस पर अपनी जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा। ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है।
यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है।
अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है।
इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता
है।” “हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय
मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है,
एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।”
एक तिरंगा और लहराया था- वो फहराया था नेताजी सुभाष चंद्र बोस
ने
30 दिसंबर, 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर तिरंगा लहराया था। इस तिरंगे के बीच अशोक चक्र नहीं बल्कि शेर था।
कैस मिला हमें हमारा तिरंगा
* सन् 1921 में गांधी जी द्वारा
राष्ट्रीय ध्वज के लिए इस झंडे की पेशकश की गई।
* सन् 1931 में कांग्रेस द्वारा
राष्ट्रीय ध्वज के लिए पारित स्वराज झंडा।
* सन् 1947 से इस ध्वज को स्वतंत्र भारत
का राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया।
- पं. नेहरू ने बड़ा मार्मिक भाषण भी दिया तथा
सभी माननीय सदस्यों के समक्ष दो स्वरूप- एक रेशमी खादी व दूसरा सूती खादी से
बना- प्रस्तुत किए। सभी ने करतल ध्वनि के साथ स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज
को स्वीकार किया।
- इससे पहले 23 जून, 1947 को ध्वज को आकार देने के लिए एक
अस्थायी समिति का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष थे डॉ.
राजेन्द्रप्रसाद तथा समिति में उनके साथ थे मौलाना अबुल कलाम आजाद, के.एम. पणिक्कर, श्रीमती सरोजिनी नायडू,
के.एम. मुंशी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
और डॉ. बी.आर. आम्बेडकर। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद स्पष्ट निर्णय लिया
गया।
- रंग-रूप, आकार, मान-सम्मान, फहराने
आदि के बारे में मानक तय किए गए। अंततः 18 जुलाई 1947
को अंतिम निर्णय हो गया और संविधान सभा में स्वीकृति प्राप्ति
हेतु पं. जवाहरलाल नेहरू को अधिकृत किया, 22 जुलाई 1947
को संविधान सभा में एक आवाज में सभी ने राष्ट्रीय ध्वज को अपना
लिया।
- 21 फीट लंबाई और 14 फीट चौड़ाई। यह राष्ट्रध्वज का सबसे बड़ा आकार है जो मानक आकारों में
शामिल है लेकिन उस समय इस आकार के ध्वज को कहीं फहराया नहीं गया था। क्योंकि
आजादी के समय न तो इतने विशाल भवन थे और न इतना बड़ा कहीं दंड था कि इस ध्वज को
फहराया जा सके।
14 अगस्त 1947 की रात 10.45 पर काउंसिल हाउस के सेंट्रल हॉल में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व
में ‘वंदे मातरम्’ के गायन से
कार्यक्रम शुरू हुआ।
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व पं. जवाहरलाल नेहरू के भाषण हुए। इसके पश्चात् श्रीमती हंसाबेन मेहता ने अध्यक्ष राजेन्द्रप्रसाद को मेरा सिल्क वाला स्वरूप सौंपा और कहा कि आजाद भारत में पहला राष्ट्रध्वज जो इस सदन में फहराया जाएगा, वह भारतीय महिलाओं की ओर से इस राष्ट्र को एक उपहार है। सभी लोगों के समक्ष यह पहला प्रदर्शन था। ‘सारे जहाँ से अच्छा’ व ‘जन-गण-मन’ के सामूहिक गान के साथ यह समारोह सम्पन्न हुआ।
पंडित नेहरू ने ध्वज के मानक बताए, जिन्हें जानना जरूरी है (जिनका उल्लेख भारतीय मानक संस्थान के क्रमांक आई.एस.आई.-1-1951, संशोधन 1968 में किया गया)।
उन्होंने कहा भारत का राष्ट्रध्वज समतल तिरंगा होगा। यह आयताकार होकर इसकी
लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 2:3 होगा, तीन
रंगों की समान आड़ी पट्टिका होगी। सबसे ऊपर केसरिया, मध्य में
सफेद तथा नीचे हरे रंग की पट्टी होगी। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित
अशोक स्तंभ का चौबीस शलाकाओं वाला चक्र होगा, जिसका व्यास
सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा।
निर्माण में जो वस्त्र उपयोग में लाया जाएगा, वह खादी का
होगा तथा यह सूती, ऊनी या रेशमी भी हो सकता है, लेकिन शर्त यह होगी कि सूत हाथ से काता जाएगा एवं हाथ से बुना जाएगा।
इसमें हथकरघा सम्मिलित है। सिलाई के लिए केवल खादी के धागों का ही प्रयोग होगा।
नियमानुसार खादी के एक वर्ग फीट कपड़े का वजन 205 ग्राम होना
चाहिए।
निर्माण के लिए हाथ से बनी खादी का उत्पादन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के
एक समूह द्वारा पूरे देश में मात्र ‘गरग’ गांव में किया
जाता है जो उत्तरी कर्नाटक के धारवाड़ जिले में बेंगलूर-पूना रोड पर स्थित है। इसकी
स्थापना 1954 में हुई, परन्तु अब
निर्माण क्रमश: ऑर्डिनेंस क्योरिंग फैक्टरी शाहजहांपुर, खादी
ग्रामोद्योग आयोग मुम्बई एवं खादी ग्रामोद्योग आयोग दिल्ली में होने लगा है। निजी
निर्माताओं द्वारा भी राष्ट्रध्वज का निर्माण किए जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है,
लेकिन गौरव व गरिमा को दृष्टिगत रखते हुए यह जरूरी है कि ध्वज पर
आई.एस.आई. (भारतीय मानक संस्थान) की मुहर लगी हो।
- भारत के राष्ट्री य ध्विज की ऊपरी पट्टी
में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का
श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र
को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय
शताब्दीईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया
है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का
अर्थ मृत्यु है।
चक्र
- इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से
लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और
रुकने का अर्थ मृत्यु है।
ध्वज संहिता
- 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई
वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और
फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी
भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय
झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्वज की
संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन
भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य
विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों,
शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के
प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य
सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन
के विषय में जानकारी देता है।
विशेष परिस्थिति- राष्ट्रीय उल्लास के पर्वों पर अर्थात् 15 अगस्त, 26 जनवरी के अवसर पर या किसी राष्ट्र विभूति
का निधन होता है तथा राष्ट्रीय शोक घोषित होता है, तब ध्वज
को झुका दिया जाना चाहिए, लेकिन जहां जिस भवन में उस राष्ट्र
विभूति का पार्थिव शरीर रखा है, वहां उस भवन का ध्वज झुका
रहेगा तथा जैसे ही पार्थिव शरीर अंत्येष्टि के लिए बाहर निकालते हैं, वैसे ही ध्वज को पूरी ऊंचाई तक फहरा दिया जाएगा।
शवों पर लपेटना- राष्ट्र पर प्राण न्योछावर करने वाले फौजी रणबांकुरों के
शवों पर एवं राष्ट्र की महान विभूतियों के शवों पर भी ध्वज को उनकी शहादत को
सम्मान देने के लिए लपेटा जाता है, तब केसरिया पट्टी सिर तरफ
एवं हरी पट्टी पेरों की तरफ होना चाहिए, न कि सिर से लेकर
पैर तक सफेद पट्टी चक्र सहित आए और केसरिया और हरी पट्टी दाएं-बाएं हों। याद रहे
शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ ध्वज को जलाया या दफनाया नहीं जाए, बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पूर्व या कब्र में शरीर रखने से पूर्व ध्वज को
हटा लिया जाए।
नष्टीकरण- अमानक, बदरंग कटी-फटी स्थिति वाला
ध्वज का स्वरूप फहराने योग्य नहीं होता। ऐसा करना ध्वज का अपमान होकर अपराध है,
अतः वक्त की मार से जब कभी ध्वज ऐसी स्थिति हो जाए तो गोपनीय तरीके
से सम्मान के साथ अग्नि प्रवेश दिला दिया जाता है। या वजन/रेत बांधकर पवित्र नदी
में जल समाधि दे दी जाती है। यही प्रकिया पार्थिव शरीरों पर से उतारे गए ध्वजों के
साथ भी किया जाता है।
विशेष:- भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में चार रंग प्रदर्शित होते हैं, तीन रंगों के बारे में तो आप सभी जानते हैं, परंतु चोथा रंग नीला होता हैं जिससे ध्वज के मध्य में चक्र बना होता हैं।
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