जगद्गुरु
Jagadguru
भारत में अध्यात्म की दुनिया बहुत प्रभावी हैं
और इसी आध्यात्म की दुनिया के ज्ञाता को जगद्गुरु की उपाधि दी जाती हैं। जगद्गुरु
का शाब्दिक अर्थ हैं कि विश्व का गुरू जो हर क्षेत्र में अपनी पकङ रखता हो। अभी तक
के ज्ञात स्रोतों के अनुसार भारत में कुल 5 जगद्गुरु हुए हैं।
भारत द्वारा श्री कृपालु जी को 1957 में
जगद्गुरु की उपाधि दी गई थी,
उनसे पहले चार मूल जगद्गुरू थे जो निम्न हैं।
(1) श्रीकृष्णचक्रचार्य (788-820 ई.)
(2) रामानुजचार्य (1017-1137)
(3) श्रीराम निंब्रिंब्रिबा (1017-1137)
(4)
श्रीपाद माधवाचार्य (1239-1319)
(5)
श्री कृपालु महाराज जिन्हें "पांचवें मूल
जगद्गुरु" के रूप में जाना जाता था। उन्हें काशी विदवत परिषद, समनवय-आचार्य शीर्षक से भी
सम्मानित किया गया था, अर्थात्, वह
अन्य सभी जगद्गुरुओं की शिक्षाओं, छह दर्शन और (प्रतीत होता
विरोधाभासी) शिक्षाओं के अर्थ का विश्लेषण और सामंजस्य स्थापित करता है। जगदगुरुत्तम
(जगद्गुरुओं में सबसे अग्रणी) से सम्मानित होने के बाद, उन्होंने
आगरा में अधिकांश प्रारंभिक वर्ष बिताए। प्रेम रस सिद्धांत और प्रेम रस मदीरा भी
उनके जीवन के उस चरण के दौरान लिखे गए थे, जो 1950 के दशक के
अंत से 1970 के दशक तक फैले हुए थे।
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