प्रथम न्यायाधीश - सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया (एच.जे. कनिया) को स्वतन्त्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 6 नवम्बर 1951 को 61 साल आयु में निधन तक इस पद पर कार्यरत रहे।
सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया (एच.जे. कनिया) –
जन्म – | 3 नवम्बर 1890 (सूरत) |
मृत्यु – | 6 नवम्बर 1951 (61 वर्ष 3 दिन) |
पिता - | जेकिसुनदास, भावनगर रियासत के शामलदास कॉलेज में संस्कृत प्राध्यापक और फिर प्रधानाचार्य रहे। |
पत्नी – | कुसुम मेहता |
शिक्षा - | 1910 में शामलदास कॉलेज, भावनगर रियासत से कला स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की |
1912 में शासकीय विधी महाविद्यालय, बम्बई से विधी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की | |
1913 में शासकीय विधी महाविद्यालय, बम्बई से विधी स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की | |
व्यवसाय – | शिक्षा के बाद बम्बई उच्च न्यायालय में वकील का कार्य किया। |
1930 में बम्बई उच्च न्यायालय के कार्यकारी न्यायाधीश का कार्यभार सम्भाला। | |
1931 में बम्बई उच्च न्यायालय के अपर न्यायाधीश का कार्यभार सम्भाला। | |
1933 में बम्बई उच्च न्यायालय के सहयोगी न्यायाधीश का कार्यभार सम्भाला। | |
1943 की बर्थडे ऑनर्ज़ लिस्ट में कनिया का नाम था और उन्हे सर की उपाधि मिली | |
20 जून 1946 में वह संघीय न्यायालय के सहयोगी न्यायाधीष नियुक्त हुए। | |
14 अगस्त 1947 को संघीय न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष सर पैट्रिक स्पेन्ज़ सेवानिवृत्त हुए और तब यह पद कनिया को मिला। | |
26 जनवरी को जब स्वतनत्र भारत एक गणराज्य बना तो कनिया देश के सर्वोच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बने और उन्होने अपनी शपथ भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के सामने पढ़ी। |
v विशेष – श्री कनिया के भाई श्री हीरालाल जेकिसुनदास, भी वकील थे। हीरालाल जेकिसुनदास के बेटे मधुकर हीरालाल जेकिसुनदास भी 1987 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, और आगे चलके मुख्य न्यायाधीश बने