स्वदेशी दिवस
Indigenous Day
स्वदेशी
का अर्थ है- 'अपने
देश का' अथवा 'अपने देश में निर्मित'। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक
क्षेत्र में जन्मी, निर्मित
या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से
स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला, यह
1911 तक चला और गाँधी जी के भारत में
पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, विनायक दामोदर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला
लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा
गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होंने इसे
"स्वराज की आत्मा" कहा।
देशप्रेम की भावना के वशीभूत होकर कभी-कभी सामान्य सा
दिखायी देने वाला व्यक्ति भी बहुत बड़ा काम कर जाता है. ऐसा ही बाबू गेनू के साथ
हुआ. गेनू का जन्म 1908 में
पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पडवल में हुआ था. इस गाँव से कुछ दूरी पर ही शिवनेरी
किला था, जहाँ हिन्दू कुल गौरव छत्रपति शिवाजी महाराज का
जन्म हुआ था.
गेनू बचपन में बहुत आलसी
बालक था. देर तक सोना और फिर दिन भर खेलना ही उसे पसन्द था. पढ़ाई में भी उसकी
रुचि नहीं थी; पर दुर्भाग्य से
उसके पिता शीघ्र ही चल बसे. इसके बाद उनके बड़े भाई भीम उसके संरक्षक बन गये. वे
स्वभाव से बहुत कठोर थे. उनकी आज्ञानुसार वह जानवरों को चराने के लिए जाता था. इस
प्रकार उसका समय कटने लगा.
एक बार उसका एक बैल
पहाड़ी से गिर कर मर गया. इस पर बड़े भाई ने उसे बहुत डांटा. इससे दुखी होकर गेनू
मुम्बई आकर एक कपड़ा मिल में काम करने लगा. उसी मिल में उसकी माँ कोंडाबाई भी
मजदूरी करती थी. उन दिनों देश में स्वतन्त्रता का संघर्ष छिड़ा था. स्वदेशी
वस्तुओं का प्रयोग तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन जोरों पर था. 22 वर्षीय बाबू गेनू भी इस आन्दोलन में
बढ़-चढ़कर भाग लेते थे. मिल के अपने साथियों को एकत्र कर वह आजादी एवं स्वदेशी का
महत्व बताया करते थे.
26 जनवरी, 1930
को ‘सम्पूर्ण स्वराज्य माँग दिवस’ आन्दोलन में बाबू गेनू की सक्रियता देखकर
उन्हें तीन महीने के लिए जेल भेज दिया; पर इससे बाबू के मन
में स्वतन्त्रता प्राप्ति की चाह और तीव्र हो गयी. 12 दिसम्बर,
1930 को मिल मालिक मैनचेस्टर से आये कपड़े को मुम्बई शहर में भेजने
वाले थे. जब बाबू गेनू को यह पता लगा, तो उसका मन विचलित हो
उठा. उसने अपने साथियों को एकत्र कर हर कीमत पर इसका विरोध करने का निश्चय किया. 11
बजे वे कालबादेवी स्थित मिल के द्वार पर आ गये. धीरे-धीरे पूरे शहर
में यह खबर फैल गयी. इससे हजारों लोग वहाँ एकत्र हो गये. यह सुनकर पुलिस भी वहाँ आ
गयी.
कुछ ही देर में विदेशी
कपड़े से लदा ट्रक मिल से बाहर आया. उसे सशस्त्र पुलिस ने घेर रखा था. गेनू के
संकेत पर घोण्डू रेवणकर ट्रक के आगे लेट गया. इससे ट्रक रुक गया. जनता ने ‘वन्दे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाये. पुलिस ने उसे घसीट
कर हटा दिया; पर उसके हटते ही दूसरा कार्यकर्ता वहाँ लेट
गया. बहुत देर तक यह क्रम चलता रहा.
यह देखकर अंग्रेज पुलिस
सार्जेण्ट ने चिल्ला कर आन्दोलनकारियों पर ट्रक चढ़ाने को कहा; पर ट्रक का भारतीय चालक इसके लिए तैयार
नहीं हुआ. इस पर पुलिस सार्जेण्ट उसे हटाकर स्वयं उसके स्थान पर जा बैठा. यह देखकर
बाबू गेनू स्वयं ही ट्रक के आगे लेट गया. सार्जेण्ट की आँखों में खून उतर आया.
उसने ट्रक चालू किया और बाबू गेनू को रौंद डाला.
सब लोग भौंचक रह गये.
सड़क पर खून ही खून फैल गया. गेनू का शरीर धरती पर ऐसे पसरा था, मानो कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की छाती से
लिपटा हो. उसे तत्क्षण अस्पताल ले जाया गया; पर उसके प्राण
पखेरू तो पहले ही उड़ चुके थे. इस प्रकार स्वदेशी के लिए बलिदान देने वालों की
माला में पहला नाम लिखाकर बाबू गेनू ने स्वयं को अमर कर लिया. तभी से 12 दिसम्बर को ‘स्वदेशी दिवस’ के
रूप में मनाया जाता है.
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