शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain)

 

कृत्रिम वर्षा

(Artificial Rain)

कृत्रिम वर्षा (क्लाउड सीडिंग) एक ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिक तरीके से बदलाव लाया जाता है। ऐसी स्थिति पैदा की जाती है, जिससे वातावरण बारिश के अनुकूल बने। इसके जरिए भाप को वर्षा में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड और सूखे बर्फ को बादलों पर फेंका जाता है। यह काम एयरक्राफ्ट या आर्टिलरी गन के जरिए होता है। कुछ शोधों के बाद हाइग्रस्कापिक मटेरियल जैसे नमक का भी इसमे इस्तेमाल होने लगा है। जल प्रबंधक अब इसे ठंड में स्नोफॉल बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल करने पर देखने लगे हैं।

इस थ्योरी को सबसे पहले जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के विंसेंट शेफर और नोबल पुरस्कार विजेता इरविंग लेंगमुइर ने कंफर्म किया था। शेफर ने जुलाई 1946 में क्लाउड सिडिंग का सिद्धांत खोजा। 13 नवंबर 1946 को क्लाउड सीडिंग के जरिए पहली बार न्यूयॉर्क फ्लाइट के जरिए प्राकृतिक बादलों को बदलने का प्रयास हुआ। जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रदर्शन किया गया था।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार, अभी तक 56 देश कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल कर चुके हैं। इसमें संयुक्ति अरब अमीरात से लेकर चीन तक शामिल हैं। यूएई ने जहां पानी की कमी दूर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया तो वहीं चाइना ने 2008 में समर ओलम्पिक की ओपनिंग सेरेमनी के पहले प्रदूषण को खत्म करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। यूएस में स्की रिसोर्ट के जरिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल स्नोफॉल के लिए भी किया जाता है। वहीं चाइना अब सूखे से बचने के लिए इस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है।

ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन और यूएस सभी इस मैथेडोलॉजी का परीक्षण कर चुके हैं। अबूधाबी डेजर्ट में भी इसका इस्तेमाल हो चुका है। हालांकि बारिश होने के लिए यह जरूरी है कि वायुमंडल में थोड़ी नमी हो। इस प्रक्रिया तीन चरणों में होती है। पहले चरण में हलचल पैदा की जाती है। दूसरा चरण बिल्डिंग अप कहलाता है और तीसरे में केमिकल छोड़े जाते हैं।

पहला चरण

पहले चरण को पूरा करने के लिए कई रसायनों की मदद ली जाती है. इस चरण में जिस इलाके में बारिश करवानी होती है, उस इलाके के ऊपर चलने वाली हवा को ऊपर की ओर भेजा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बादल बारिश करने के योग्य बन सकें. इन रसायनों के द्वारा हवा से जलवाष्प को सोख लेने के बाद संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के नाम इस प्रकार हैं.

संख्या रसायनों के नाम

1    कैल्शियम क्लोराइड

2    नमक

3    कैल्शियम कार्बाइड

4    यूरिया

5    कैल्शियम ऑक्साइड और

6    अमोनियम नाइट्रेट

दूसरा चरण

दूसरे चरण को बिल्डिंग स्टेज भी कहा जाता है, इस चरण में बादलों का घनत्व बढ़ाया जाता है. जिसके लिए नमक और सूखी बर्फ के अलावा निम्मलिखित रसायनों का प्रयोग किया जाता है-

संख्या रसायनों के नाम

1    यूरिया

2    अमोनियम नाइट्रेट और

3    कैल्शियम क्लोराइड

तीसरा चरण

सुपर-कूल वाले रसायनों यानी की सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ का छिड़काव विमान, गुब्बारों और मिसाइलों की मदद से बादलों पर किया जाती हैं. जिसके कारण बादलों का घनत्व और बढ़ जाता है और वो बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाते हैं. जिसके बाद बादल में छुपे पानी के कण बिखरने लगते हैं और गुरुत्व बल के कारण धरती पर गिरते हैं. जिन्हें हम बारिश कहते हैं.

विमानों की मदद से वर्षा

अगर किसी क्षेत्र पर बारिश करवानी हो और वहां पर पहले से ही बारिश वाले बादल मौजूद हों, तो ऐसी स्थिति में पहले के दो चरणों को नहीं किया जाता है और सीधे तीसरे चरण की शुरूआत कर दी जाती है. वर्षा वाले बादलों का पता डॉप्लर राडार की सहायता से लगाया जाता है, फिर विमान को क्लाउड-सीडिंग के लिए इन बादलों के पास भेजा जाता है. विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो जनरेटर लगे होते हैं. जनरेटरों में सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर में भरा जाता है. बारिश करवाने वाले इलाके में विमान को हवा की उल्टी दिशा में उड़ाया जाता है. और जिस बादल पर ये क्लाउड-सीडिंग करनी होती है उसके सामने आते ही जनरेटर चला दिए जाते हैं. वहीं आजकल विमान के अलावा मिसाइल के जरिए भी ये प्रक्रिया की जा रही है, क्योंकि मिसाइल विमान से कम महंगी पड़ती है और विमान के मुकाबले मिसाइल से 80 फीसदी ज्यादा कार्य में सफलता मिलती है.

क्लाउडसीडिंग का प्रयोग (How does the process of cloud seeding work in hindi)

चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, इजरायल, यूएई जैसे कई देशों ने कृत्रिम बारिश को अपना लिया है और ये देश अन्य देशों को भी कृत्रिम बारिश करने में तकनीकी सहयोग दे रहे हैं, वहीं अगर चीन की बात की जाए तो, चीन में इस तकनीक का कई बार इस्तेमाल किया जा रहा है. कृत्रिम बारिश के जरिए चीन की राजधानी बीजिंग सहित कई सूखाग्रस्त इलाकों में बारिश की मात्रा बढ़ाई गई है. इतना ही नहीं चीन ने 2008 ओलंपिक खेलों के ठीक पहले बीजिंग में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया था. बीजिंग ओलंपिक के उद्घाटन समारोह के दौरान बारिश होने की संभावना को देखते हुए कई सारी मिसाइलों के जरिए आयोजन स्थल से दूर सिल्‍वर आयोडाइड क्रिस्टल का छिड़काव बादलों पर किया गया था. जिसकी वजह से बारिश आयोजन स्थल तक पहुंचने से पहले नजदीकी इलाकों में हो गई और चीन ने ओलंपिक उद्घाटन का कार्यक्रम सफलता के साथ कर लिया.

भारत में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain or Cloud seeding in India)

भारत की आधिकतर आबादी खेती से जुड़ी हुई है और बारिश किसानों के लिए बेहद जरूरी है. मगर कई सालों से समय पर बारिश ना होने के कारण किसानों की फसल का अच्छा खासा नुकसान हो रहा रही है. ऐसे में ये तकनीक भारत के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है. भारत में सूखे की समस्या से निपटने के लिए भारत के कई राज्य कृत्रिम बारिश का प्रयोग कर रहे हैं. साल 1983 में तमिलनाडु सरकार ने इस तकनीक की मदद से सूखाग्रस्त इलाकों में बारिश करवाई थी. वहीं कर्नाटक सरकार ने भी इस तकनीक का इस इस्तेमाल अपने राज्य के सूखाग्रस्त इलाकों में किया था. वहीं कृत्रिम बारिश का प्रयोग करने में आंध्र प्रदेश पहले नंबर पर हैं. यहां पर 2008 में 12 जिलों में इसका प्रयोग कर बारिश करवाई गई थी. ये इस्तेमाल किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ था.

प्रदूषण कम करने के लिए भी फायदेमंद (Advantages and side effects of artificial rain or cloud seeding)

कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल सूखाग्रस्त से निपटने के साथ-साथ हवा में मौजूद प्रदूषण को कम करने के लिए भी किया जाता है. कृत्रिम बारिश करवा कर हवा में फैले जहरीले धुएं को खत्म किया जा सकता है. दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में आग लगने से हुए पर्यावरण प्रदूषण को खत्म करने के लिए कृत्रिम बारिश कर हवा की गुणवत्ता को सुधारा गया था. इसी प्रकार जुलाई 2017 में भारत की राजधानी दिल्ली में PM 10 और PM 2.5 की समस्या हुई थी, उस समय सरकार द्वारा इस विषय पर विचार किया जा रहा था.

हालांकि, इसमें प्रयोग होने वाले रसायन पर्यावरण के लिए हानिकारक माने जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

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