शनिवार, 7 नवंबर 2020

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal)


 बिपिन चंद्र पाल

(Bipin Chandra Pal)

बिपिन चंद्र पाल (7 नवंबर, 1858 - 20 मई 1932) एक भारतीय क्रांतिकारी थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल (लाल-बाल-पाल) की इस तिकड़ी ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला। 'गरम' विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल हैं।

उनके अनुसार विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और यहाँ के लोगों का काम भी छिन रहा था। उन्होंने अपने आंदोलन में इस विचार को भी सामने रखा। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जागरुकता पैदा करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनका विश्वास था कि केवल प्रेयर पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है।

जीवनी

7 नवंबर 1858 को अविभाजित भारत के हबीबगंज जिले में (अब बांग्लादेश में) एक संपन्न कायस्थ जाति घर में पैदा विपिनचंद्र पाल सार्वजनिक जीवन के अलावा अपने निजी जीवन में भी अपने विचारों पर अमल करने वाले और स्थापित दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ थे। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था जो उस समय दुर्लभ बात थी। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा। लेकिन धुन के पक्के पाल ने दबावों के बावजूद कोई समझौता नहीं किया। किसी के विचारों से असहमत होने पर वह उसे व्यक्त करने में पीछे नहीं रहते। यहाँ तक कि सहमत नहीं होने पर उन्होंने महात्मा गाँधी के कुछ विचारों का भी विरोध किया था।

केशवचंद्र सेन, शिवनाथ शास्त्री जैसे नेताओं से प्रभावित पाल को अरविन्द के खिलाफ गवाही देने से इंकार करने पर छह महीने की सजा हुई थी। इसके बाद भी उन्होंने गवाही देने से इंकार कर दिया था। जीवन भर राष्ट्रहित के लिए काम करने वाले पाल का 20 मई 1932 को निधन हो गया।

रचनाएँ

पाल की कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं :

इंडियन नेस्नलिज्म

नैस्नल्टी एंड एम्पायर

स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन

द बेसिस ऑफ़ रिफार्म

द सोल ऑफ़ इंडिया

द न्यू स्पिरिट

स्टडीज इन हिन्दुइस्म

क्वीन विक्टोरिया बायोग्राफी

पत्रिकाओं का सम्पादन

विपिनचन्द्रपाल ने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया। 1886 में उन्होने सिलहट से निकलने वाले 'परिदर्शक' नामक साप्ताहिक में कार्य आरम्भ किया। उनकी कुछ प्रमुख पत्रिकाएं इस प्रकार हैं:

परिदर्शक (1880)

बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882)

लाहौर ट्रिब्यून (1887)

द न्यू इंडिया (1892)

द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901)

बन्देमातरम (1906, 1907)

स्वराज (1908 -1911)

द हिन्दू रिव्यु (1913)

द डैमोक्रैट (1919, 1920)

बंगाली (1924, 1925)

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