भारतीय
वायु सेना दिवस
(Indian
Air Force Day)
भारतीय वायुसेना
(इंडियन एयरफोर्स) भारतीय सशस्त्र सेना का एक अंग है जो वायु युद्ध, वायु सुरक्षा, एवं वायु चौकसी का महत्वपूर्ण काम देश
के लिए करती है। इसकी स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गयी थी। आजादी (1950 में पूर्ण
गणतंत्र घोषित होने) से पूर्व इसे रॉयल इंडियन एयरफोर्स के नाम से जाना जाता था और
1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजादी (1950 में
पूर्ण गणतंत्र घोषित होने) के पश्च्यात इसमें से "रॉयल" शब्द हटाकर
सिर्फ "इंडियन एयरफोर्स" कर दिया गया।
आज़ादी के बाद
से ही भारतीय वायुसेना पडौसी मुल्क पाकिस्तान के साथ चार युद्धों व चीन के साथ एक
युद्ध में अपना योगदान दे चुकी है। अब तक इसने कईं बड़े मिशनों को अंजाम दिया है
जिनमें ऑपरेशन विजय - गोवा का अधिग्रहण, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन कैक्टस व ऑपरेशन पुमलाई शामिल
है। ऐसें कई विवादों के अलावा भारतीय वायुसेना संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का
भी सक्रिय हिसा रही है।
भारत के
राष्ट्रपति भारतीय वायु सेना के कमांडर इन चीफ के रूप में कार्य करते है। वायु
सेनाध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल (ACM), एक चार सितारा कमांडर है और वायु सेना का नेतृत्व करते है। भारतीय वायु
सेना में किसी भी समय एक से अधिक एयर चीफ मार्शल सेवा में कभी नहीं होते।
इसका मुख्यालय
नयी दिल्ली में स्थित है एवं 2006 के आंकडों के अनुसार इसमें कुल मिलाकर 170,000 जवान एवं 1350 लडाकू विमान हैं जो इसे दुनिया की चौथी सबसे बडी
वायुसेना होने का दर्जा दिलाती है।
उद्देश्य
भारतीय वायुसेना
के मिशन, सशस्त्र बल अधिनियम 1947 के द्वारा परिभाषित किया गया
है भारत के संविधान और सेना अधिनियम 1950, हवाई युद्धक्षेत्र
में:
"भारत और
सहित हर भाग की रक्षा, उसके बचाव के लिए
तैयारी और ऐसे सभी कृत्यों के रूप में अपनी अभियोजन पक्ष और इसके प्रभावी वियोजन
को समाप्ति के बाद युद्ध के समय में अनुकूल किया जा सकता है।"
इस प्रकार, भारतीय वायु सेना के सभी खतरों से भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा करना,
सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ संयोजन के रूप में भारतीय
क्षेत्र और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा प्राथमिक उद्देश्य है। भारतीय वायु सेना
युद्ध के मैदान में, भारतीय सेना के सैनिकों को हवाई समर्थन
तथा सामरिक और रणनीतिक एयरलिफ्ट करने की क्षमता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना
एकीकृत अंतरिक्ष प्रकोष्ठ के साथ दो अन्य शाखाओं भारतीय सशस्त्र बल, अंतरिक्ष विभाग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ अंतरिक्ष
आधारित संपत्तियों के उपयोग प्रभावी ढंग से करने के लिए, सैनिक
दृष्टि से इस संपत्ति पर ध्यान देंता है
भारतीय वायु
सेना भारतीय सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ साथ आपदा राहत कार्यक्रमो में
प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री गिराने, खोज एवं बचाव अभियानों, आपदा क्षेत्रों में नागरिक
निकासी उपक्रम में सहायता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना ने 2004 में सुनामी
तथा 1998 में गुजरात चक्रवात के दौरान प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए राहत
आपरेशनों के रूप में व्यापक सहायता प्रदान की। भारतीय वायु सेना अन्य देशों की
राहत कार्यक्रमों में भी सहायता प्रदान करता है, जैसा की
उसने ऑपरेशन रेनबो (Rainbow) के रूप में श्रीलंका में किया।
आज़ादी
के बाद के शुरूआती वर्ष (1947-1950)
आज़ादी के
पश्च्यात भारत दो भागों, भारत संघ व डोमिनियन
ऑफ़ पाकिस्तान, में बांट दिया गया। भौगोलिक विभाजन के बाद
वायुसेना भी दोनो देशों में बांट दी गई। भारत कि वायुसेना का नाम रॉयल इंडियन
एयरफोर्स ही रहा पर दस में से तीन स्कवॉड्रन और कार्यालय जो पाकिस्तान में चले गए
थे वह रॉयल पाकिस्तान एयरफोर्स में शामिल कर लिए गए। रॉयल इंडियन एयरफोर्स का
चिन्ह एक अंतरिम 'चक्र' अशोक चक्र से
व्युत्पन्न चिन्ह से बदल गया था।
उसी दौरान जम्मू
कश्मीर के ग्रहण का विवाद खडा हो गया। पाकिस्तानी सेना को राज्य में घुसते देख
उसके महाराजा हरि सिंह ने भारत का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया ताकि सैन्य सहायता
मिल सके। विलय के कागज़ातों पर दस्तखत होते ही रॉयल इंडियन एयरफोर्स ने सैन्य
टुकडियों को युद्ध क्षेत्र में उतारना शुरू कर दिया और यह था जब रसद कार्य का एक
अच्छे प्रबंधन के रूप में काम आया। इस तरह भारत-पाकिस्तान में पूर्णतया: युद्ध छिड
गया हालाँकि युद्ध कि औपचारिक घोषणा कभी नहीं की गई। युद्ध के समय रॉयल इंडियन
एयरफोर्स का पाकिस्तानी वायुसेना से हवाई युद्ध में सामना नहीं हुआ परन्तु सैन्य
टुकडियों को पहुंचाने व ज़मीनी दल को हवाई सहकार्य देने में इसका महत्वपूर्ण
योगदान रहा।
भारत को 1950 में
गणतंत्र घोषित करते ही रॉयल शब्द हटाकर सिर्फ इंडियन एयरफोर्स कर दिया गया और उसी
समय से आज कार्यान्वित चिन्ह अपना लिया गया।
कौंगो युद्ध व
गोवा मुक्ती संग्राम (1960-1961)
भारतीय वायुसेना
ने 1960 में महत्वपूर्ण संघर्ष देखा जब कौंगो पर बेल्जियम का 75 सालों का राज
अचानक खत्म हो गया और देश को बड़े पैमाने पर हिंसा और विद्रोह ने निगल लिया।
भारतीय वायुसेना ने अपने पांचवें स्कवॉड्रन, जो इंगलिश इलेक्ट्रिक कैनबेरा विमानों का दस्ता था, को
संयुक्त राष्ट्र के कौंगो अभियान में सहायता देने के मकसद से रवाना कर दिया।
स्क्वाड्रन ने नवंबर में परिचालन मिशन के उपक्रम शुरू कर दिए। 1966 में संयुक्त
राष्ट्र का अभियान खत्म होने तक स्क्वाड्रन वहां टिका रहा। लिओपोल्डविल और कमिना
से कार्य करते हुए कैनबेरा विमानो ने जल्द ही विद्रोही वायुसेना को नेस्तानाबूद कर
दिया और संयुक्त राष्ट्र के ज़मीनी दस्ते का एक मात्र हवाई सहारा बन गए।
1961 के अंत में
सालों से चली आ रही बातचीत के बाद भारतीय सरकार ने पुर्तगालियों को गोवा व आस पास
के इलाकों से खदेडने के लिए सशस्त्र बलों को तैनात करने का निर्णय लिया।ऑपरेशन
विजय के तहत भारतीय वायुसेना को ज़मीनी दल को सहायता प्रदान करने के लिए अनुरोध
किया गया। 8 से 18 दिसम्बर के बीच पुर्तगाली वायुसेना को बाहर निकालने के उद्देश्य
से कुछ फाइटर्स और बमवर्षक विमानों द्वारा जांच उड़ानों भरी गई पर इसका कोई असर
नहीं हुआ। 18 दिसम्बर को कैनबेरा बमवर्षको ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की
परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा कि टर्मिनल व एटीसी टॉवर को बर्बाद ना किया जाए।
दो पुर्तगाली यातायात विमान (सुपर कॉस्टिलेशन व डीसी-6) को अकेला छोड़ दिया गया
ताकि उन पर कब्ज़ा किया जा सके परन्तु पुर्तगाली पायलट उन्हे क्षतिग्रस्त हवाई
पट्टी से उडा ले जाने में सफल हुए जिसके ज़रिये वे पुर्तगाल भाग निकले। हंटर
विमानो ने बाम्बोलिम में वायरलेस स्टेशन पर हमला किया व वैम्पायर विमानो द्वारा
ज़मीनी दस्तों को सहायता प्रदान की गई। दमन में मैस्टर विमानो द्वारा पुर्तगाली
बंदूक पदों पर हमला किया गया। औरागन्स (जिसे भारतीय वायुसेना में तुफानिज़ कहा
जाता है) ने दीव में रनवे पर बमबारी की और नियंत्रण टावर, वायरलेस स्टेशन और मौसम स्टेशन नष्ट कर दिए।
सीमा
विवाद व वायुसेना में बदलाव (1962-1971)
हाल-24 मारुत, भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया पहला लढाकू विमान।
1962 में भारत व
चीन में स्तिथि युद्ध स्तर तक जा पहुंची जब चीन ने अपनी सैन्य टुकडियां भारत के
सीमावर्ती इलाकों में दाखिल कर दी। भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत के सैन्य
योजनाकार वायुसेना तैनात करने और प्रभावी ढंग से इस्तेमाल में असफल रहे जिसका
खामियाज़ा भारत को चीन के हाथों कईं जगह मुश्किलों का सामना करना पडा, खास तौर पर जम्मू-कश्मीर में।
भारत-चीन युद्ध
के तीन साल बाद 1965 में कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में द्वीतिय युद्ध छिड
गया। चीन से युद्ध से सबक लेते हुए इस बार भारत ने अपनी वायुसेना का युद्ध के
दौरान बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। यह पहली बार था जब भारतीय वायुसेना ने दुश्मन
वायुसेना से आमने-सामने भिडंत की हो। इस बार थल सेना को मदद करने के बजाए वायुसेना
ने पाकिस्तानी वायुसेना के हवाई अड्डों पर स्वतंत्र हमले किए। यह अड्डें
पाकिस्तानी सीमा के काफी अन्दर थे जिससे भारतीय वायुसेना के विमानों को वायुयान -
विध्वंसी गोलाबरी से काफी खतरा था। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय
वायुसेना से अधिक गुणात्मक श्रेष्ठता का आनंद लिया क्योंकि भारतीय विमान द्वितीय
विश्व युद्ध के पुराने विमान थे। इस के बावजूद, भारतीय वायुसेना पाकिस्तानी वायुसेना को संघर्ष क्षेत्रों पर हवा में
श्रेष्ठता पाने से रोकने में सक्षम रही। युद्ध समाप्ति पर पाकिस्तान ने 113 भारतीय
विमान मार गिराने का दावा किया जबकी भारत केवल 73 पाकिस्तानी विमान ही गिरा पाया।
60% से अधिक भारतीय विमान पठानकोट व कालिकुंडा में हवाई पट्टी पर खडे-खडे ही बरबाद
कर दिए गए थे।
1965 के युद्ध
के बाद भारतीय वायु सेना ने अपने बदलाव व अपनी क्षमताओं में सुधार की एक श्रृंखला
शुरू कर दी। 1966 में पैरा कमांडो की रेजिमेंट तैयार की गई। अपनी रसद आपूर्ति और
बचाव कार्य करने की क्षमता में वृद्धि के लिए वायुसेना ने हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स
द्वारा ऐव्रो से प्राप्त लाइसंन्स के तहत बनाए गए 72 एचएस 748 विमान शामिल किए।
भारत ने लड़ाकू विमानों के स्वदेशी निर्माण पर अधिक दबाव डालना शुरू कर दिया जिसके
परिणाम स्वरूप प्रसिद्ध जर्मन एयरोस्पेस इंजीनियर कर्ट टैन्क द्वारा डिज़ाइन किए
गए हाल एचएफ-24 मारूत विमान भारतीय वायुसेना का अंग बन गए। हाल (हिन्दुस्तान
एरोनॉटिक्स लिमिटेड) ने भी फॉलंड ग्नात विमानों के एक उन्नत संस्करण हाल-अजित
विकसित करने शुरू कर दिए। इसी के साथ भारत ने माक-२ (ध्वनी के रफ्तार से दोगुना)
की रफ्तार से उडने वाले रुसी मिग-21 व सुखोई सू-7 लडाकू विमान शामिल कर लिए।
बांग्लादेश
मुक्ति युद्ध (1971)
1971 के अंत में
पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन के चलते भारत-पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश
मुक्ति संग्राम छिड गया। 22 नवम्बर 1971 को युद्ध शुरू होने से दस दिन पहले ही चार
पाकिस्तानी एफ-86 सेबर लडाकू विमानों ने भारतीय व गरिबपुर में मुक्ती भनी इलाकों
में हमला कर दिया जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा के काफी निकट है। चार में से तीन सेबर
विमानों को भारतीय फॉलंड ग्नात विमानों ने मार गिराया। 3 दिसम्बर को भारत ने
पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कि औपचारिक घोषणा कर दी जिसके साथ ही पाकिस्तानी
वायुसेना ने श्रीनगर, अम्बाला, सिरसा, हलवारा और जोधपुर में भारी हमले किए।
अधिकारियों को पहले से ही इसकी आशंका थी इसिलिए पहले ही सावधानियां बरती गई जिसके
कारण मामूली नुकसान हुआ।[39] भारतीय वायुसेना ने जल्द ही जवाबी कार्यवाही की जिसके
बाद पाकिस्तानी सेना बचाव की मुद्रा में उडानें भरने लगी।
शुरूआती दो
सप्ताहों में ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में 2,000 उड़ानें भरी और बढ़ती थल सेना को सहायता प्रदान की। भारतीय वायुसेना
ने नौ सेना को भी अरब सागर व बंगाल कि खाडी में पाकिस्तानी नौ सेना के विरुद्ध
लडने में सहायता प्रदान की। पश्चिमी सीमा पर लोंगेवाला की लड़ाई में वायुसेना ने
29 पाकिस्तानी टैंक, 40 बख्तरबंद गाडियां व एक रेल ध्वस्त कर
दी। वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान बमबारी करते हुए कईं प्रमुख लक्ष्यों को निशाना
बनाया जिनमें कराची में तल अधिष्ठापनों, मंगला डैम और सिंध
में गैस प्लांट शामील थे। इसी तरह कि रण-निति पूर्वी पाकिस्तान में आज़माई गई जहां
वायुसेना ने कईं और्डनन्स फैक्ट्रियां, हवाई पट्टी और प्रमुख
इलाकों को लक्ष्य बनाया। पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद भारतीय वायुसेना ने
94 पाकिस्तानी विमान जिनमें 54 एफ-86 सेबर लडाकू विमान शामिल थे, मार गिराने का दावा किया। वायुसेना ने 6,000 से अधिक
उडानें भरी जिनमें यातायात विमान व हैलिकॉप्टर शामिल थे। युद्ध के अंतिम क्षणों
में वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना पर ढाका में आत्मसमर्पण करने के लिए पर्चे डाले।
कारगिल
से पहले की गतिविधियाँ (1984-1988)
1984 में भारत
ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया, जिसके अंतर्गत
सियाचिन को कश्मीर में वापस शामिल करना था। वायुसेना के मी-8, चेतक व चीता हेलिकॉप्टर्स ने कईं भरतीय सेनानियों को सियाचिन पर उतार
दिया।13 अप्रैल 1984 को शुरू हुआ यह अभियान सियाचिन की मुश्किल परिस्थितियों के
चलते अपनी तरह का एकमेव अभियान था। यह सैन्य अभियान कामयाब रहा। भारतीय सेना को
किसी भी तरह कि रुकावट का सामना नहीं करना पड़ा और वह सियाचिन के अधिकतर भागों पर
पुनः वर्चस्व साबित करनें में कामयाब रही।
श्रींलंकाई गृह
युद्ध को खत्म करने और मानवीय सहायता प्रदान करने की वार्ता जब विफ़ल रही तब
भारतीय प्रशासन ने ऑपरेशन पुमलाई शुरू किया जिसके चलते 4 जून 1987 को पांच एन-32
के द्वारा, जिन्हे पांच मिराज 2000 ने हवाई
सुरक्षा प्रदान करने का कार्य किया, इन्सानी ज़रुरतों का
सामान गिराया जिसे श्रींलंकाई सेना ने बिना विरोध होने दिया।
संगठन
भारतीय वायुसेना
का प्रमुख अधिकारी चीफ ऑफ एअर स्टाफ (Chief of Air
Staff) कहलाता है और इसका पद चीफ एअर मार्शल (Air Marshal) का होता है। वायुसेना का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है, जिसके द्वारा संपूर्ण संगठन पर नियंत्रण रखा जाता है। चीफ ऑफ एअर स्टाफ की
सहायता के लिए एअर मार्शल तथा वाइस एअर मार्शल (Vice Air Marshal), या एअर कमोडोर (Air Commodor) पद के मुख्य चार स्टाफ
अफसर (staff officers) होते हैं। ये ही वायुसेना की प्रमुख
शाखाओं पर नियंत्रण रखते हैं।
वायुसेना का
मुख्यालय निम्नलिखित चार मुख्य शाखाओं में विभक्त है :
(1) एअर स्टाफ (Air
Staff) शाखा,
(2) प्रशासनिक
शाखा,
(3) अनुरक्षण (Maintenance)
शाखा तथा
(4) कार्यनीति
एवं योजना (Policy and Plans) शाखा।
एअर
स्टाफ शाखा
इस शाखा के
अंतर्गत निम्नलिखित निदेशालय हैं : सिगनल, प्रशिक्षण (Training), प्रासूचना (Intelligence),
मौसम विज्ञान और सहायक एवं रिजर्व (Auxiliary and Reserve)।
प्रशासनिक
शाखा
इस शाखा में
निम्नलिखित निदेशालय हैं : संगठन, (Organization), कार्मिक
(Personnel), चिकित्सा व्यवस्था लेखा, कार्मिक
सेवा, वायुसेना निर्माण (Airforce, Works), मुख्य अभियंता, वायुसेना खेलकूद, नियंत्रक बोर्ड तथा जज-एडवोकेट। इनमें चिकित्सा व्यवस्था और लेख विभाग
विशेष महत्व के हैं।
कमान तथा फौजी
काररवाई (Command and Operations)
वायुसेना की कुछ
यूनिटों के अतिरिक्त अन्य सभी यूनिटें इन केंद्र के अंतर्गत आती हैं। देश के
विभिन्न भागों में स्थित विंगों (wings) एवं केंद्रों (stations) के द्वारा कमान वायुसेना पर
अपना नियंत्रण रखता है। प्रत्येक विंग एवं केंद्र के अंतर्गत अनेक उड़ान, प्रशिक्षण, तकनीकी एवं स्थैतिक यूनिटें रहती हैं।
उपर्युक्त चार कमानें निम्नलिखित हैं :
(1) फौजी
कार्यवाही कमान,
(2) प्रशिक्षण
कमान,
(3) अनुरक्षण
कमान
(4) ईस्टर्न एअर
कमान (Eastern Air Command)।
वायुसेना के पद
वायुसेना के
कमीशन प्राप्त अफसरों के निम्नलिखित पद है :
एअर चीफ मार्शल, एअर मार्शल, एअर वाइस मार्शल, एअर
कमोडोर, ग्रुप कैप्टन, विंग कमांडर,
स्क्वॉड्रन लीडर, फ्लाइट लेफ्टिनेंट, फ्लाइंग अफसर तथा पाइलट अफसर (वर्तमान में हटा दिया गया)।
उपर्युक्त पदों
के अतिरिक्त गैर कमिशन अधिकारियों के पद निम्नलिखित हैं :
मास्टर वारंट
अफसर, वारंट अफसर, जूनियर वॉरेंट
ऑफिसर या फ्लाइट सारजेंट, सारजेंट, कार्पोरल,
लीडिंग एअरक्राफ्ट मैन, एअरक्राफ्ट्स मैन
क्लास 1 तथा एअरक्राफ्ट्स मैन मैन क्लास 2।
विमान
का उत्पादन (Aircraft Production)
भारत सरकार ने
बंगलोर स्थित हिंदुस्तान एअरक्रैप्ट फैक्टरी (Hindustan
Aircraft Factory) में विमानों का निर्माण आरंभ किया है। द्वितीय
विश्वयुद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की अत्यधिक व्यस्त वायुसेना के विमानों के
ओवरहाल (overhaul) के लिए इस फैक्टरी की स्थापना हुई थी। कुछ
ही वर्षों के बाद 1940 ई. में यह कारखाना गैरसरकारी लिमिटेड कंपनी में परिवर्तित
हो गया था और इसका नाम हिंदुस्तान एअरक्राप्ट लिमिटेड (Hindustan Aircraft
Ltd) पड़ा। 1945 ई. यह कारखाना पूर्णत: सरकारी प्रबंध में आ गया।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद इस कारखाने में विमानों का निर्माण प्रारंभ हुआ।
इसका नाम हिंदुस्तान ऐयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Ltd.) रखा गया। इस कारखाने में प्रथम भारतीय प्रशिक्षण विमान एच. टी-२ (H.
T-2) भारतीय इंजीनियरों द्वारा बनाया गया। वैंपायर जेट लड़ाकू विमान
तथा नैट विमान लाइसेंस के अंतर्गत यहाँ बनाए गए। गत दस वर्षों में पुष्पक एवं कृषक
विमानों तथा मारुत नामक भारतीय पराध्वनिक (supersonic) विमान
एच. एफ-24 (H. F-24) का निर्माण इस कारखाने में हुआ है।
लाइसेंस के अंतर्गत बने ब्रिस्टल आरफीयस (Bristoi Orpheus) तथा
रोल्स रॉयस डार्ट (Rolls Royce Dart) इंजन और भारतीय अभिकल्प
के जेट ऐरो (jet aero) इंजन इस कारखाने के अन्य उत्पादन है।
इस कारखाने में भारतीय विमानों की मरम्मत तथा ओवरहाल के अतिरिक्त विदेशी ग्राहकों,
जैसे साउदी अरब, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा के विमानों की मरम्मत एवं ओवरहाल
होता है।
कानपुर के हवाई
केंद्र (air base) पर भी भारत सरकार ने विमान निर्माण डिपो की
स्थापना की। इस डिपो में ब्रिटेन की प्रसिद्ध फर्म हाकर सिडले ग्रुप (Hawker
Siddeley Group) के सहयोग से आधुनिक परिवहन विमान ऐवरो-७४८ (AVRO
748) का निर्माण हुआ है। भारत सरकार ने कानपुर में विमान निर्माण का
एक कारखाना स्थापित किया है। कुछ दिनों पूर्व हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तथा
कानपुरवाली फैक्ट्री एकीकृत होकर एक कंपनी में परिवर्तित हो गए हैं, जिसका नाम इंडिया एयरोनॉटिकल लिमिटेड (India Aeronautics Ltd.) रखा गया है।
इंडिया
ऐरोनॉटिकल लिमिटेड की अन्य तीन नई इकाइयाँ नासिक, हैदराबाद तथा कोरापुट (Koraput) में स्थापित की गई
हैं। इनमें मिग-21 (MIG-21) नामक विमान के ढाँचे, इंजन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बन रहे हैं। विमान के ढाँचे नासिक में,
इंजन कोरापुट में तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैदराबाद में बन रहे हैं।
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