ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस
(International Day for the Preservation of the Ozone Layer)
16 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ओजोन
परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में नामित किया गया था। यह
पदनाम 19 दिसंबर,
2000 को तारीख के स्मरणोत्सव
में बनाया गया था, जिस पर राष्ट्रों ने ओजोन परत को कमजोर करने वाले पदार्थों
पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे।
1994 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन परत के संरक्षण
के लिए 16 सितंबर को
अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया, जो हस्ताक्षर की तारीख को स्मरण करते हुए 1987 में मोंट्रियल प्रोटोकॉल ऑन द सब्स्टिट्यूट
ओजोन लेयर की घोषणा करता है।
प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए जाने के 30 साल बाद ओजोन परत में छेद को बंद किया गया। ओजोन
की कमी के लिए जिम्मेदार गैसों की प्रकृति के कारण उनके रासायनिक प्रभाव 50 और 100 वर्षों के बीच जारी रहने की उम्मीद है।
ओज़ोन एवं ओज़ोन परत
ओज़ोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है जो आक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3) का यौगिक है। ओज़ोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। यह गैस
सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है।
सूर्य से निकलने वाली खतरनाक किरणों से ओज़ोन परत हमें बचाती है, मगर जहरीली गैसों से ओज़ोन परत में एक छेद हो
गया है और अब इस छेद को भरने के प्रयास हो रहे हैं। यह जहरीली गैसें हम इंसानों
द्वारा एसी और कूलर जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होती हैं। अपना जीवन अधिक से अधिक
आरामदायक बनाने के लिए हम दिन-प्रतिदिन प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ कर रहे हैं यही
उसका नतीजा है। पिछले दो दशकों से समताप मंडल में ओज़ोन की मात्रा कम हो रही है।
इसका मुख्य कारण रेफ्रिजरेटर व वातानुकूलित उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली गैस, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और हैलोन हैं। यह गैसें
ऐरोसोल में तथा फोम की वस्तुओं को फुलाने और आधुनिक अग्निशमन उपकरणों में प्रयोग
की जाती हैं। यही नहीं, सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड
भी ओज़ोन की मात्रा को कम करने में मदद करती है। ओज़ोन की परत विशेष तौर से
ध्रुवीय वातावरण में बहुत कम हो गई है। ओज़ोन परत का एक छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर
स्थित है।
पराबैगनी किरणों से नुकसान
आमतौर पर ये पराबैगनी किरण (अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन) सूर्य से पृथ्वी पर आने
वाली एक किरण है जिसमें ऊर्जा ज्यादा होती है। यह ऊर्जा ओज़ोन की परत को नष्ट या
पतला कर रही है। इन पराबैगनी किरणों को तीन भागों में बांटा गया है और इसमें से
सबसे ज्यादा हानिकारक यूवी-सी 200-280 होती है। ओज़ोन परत हमें उन किरणों से बचाती है, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता
है। पराबैगनी किरणों (अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन) की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की
क्षमता कम हो जाती है। यही नहीं, इसका असर जैविक विविधता पर भी पड़ता है और कई फसलें नष्ट हो
सकती हैं। इनका असर सूक्ष्म जीवाणुओं पर होता है। इसके अलावा यह समुद्र में
छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम
हो सकती है।
विश्व ओज़ोन दिवस का इतिहास
ओज़ोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के
लिए कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में
इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में
मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओज़ोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए। हालांकि
अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओज़ोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य
किया है। ओज़ोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि आज बाज़ार में ओज़ोन
फ्रेंडली फ्रिज, कूलर आदि आ गए हैं। इस परत को बचाने के लिए ज़रूरी है कि फोम के गद्दों का
इस्तेमाल न किया जाए। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो। रूम फ्रेशनर्स व केमिकल
परफ्यूम का उपयोग न किया जाए और ओज़ोन फ्रेंडली रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन का ही इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा
अपने घर की बनावट ओज़ोन फ्रेंडली तरीके से किया जाए, जिसमें रोशनी, हवा व ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों का
प्रयोग हो।
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