सोमवार, 24 अगस्त 2020

शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)

 

शिवराम राजगुरु

(Shivaram Rajguru)

शिवराम राजगुरु भारत के प्रसिद्ध वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। ये सरदार भगत सिंह और सुखदेव के घनिष्ठ मित्र थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इन्हें देश की आजादी के लिए दी गई राजगुरु की शहादत ने इनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा दिया है।

नाम

शिवराम राजगुरु

जन्म तिथि

24 अगस्त 1908

जन्म स्थान

पुणे (भारत)

निधन तिथि

23 मार्च 1931

उपलब्धि

दिल्ली सेंट्रल असेम्बली में हमला

उपलब्धि वर्ष

1929

महत्वपूर्ण तथ्य:-

·         राजगुरु का जन्म पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था। इनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था।

·         इनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था।

·         राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज़ भी थे।

·         बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग-ए-आज़ादी में शामिल होने की ललक थी।

·         राजगुरु मात्र मात्र 16 साल की उम्र में वे हिंदुस्तान रिपब्ल‍िकन आर्मी में शामिल हो गये थे।

·         19 दिसंबर 1928 को उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर जेपी सौंडर्स की हत्या की थी।

·         08 अप्रैल 1929 को दिल्ली में सेंट्रल असेम्बली पर भी हमला राजगुरु ने ही किया था।

·         23 मार्च, 1931 की शाम 7 बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया था।

·         ऐसा माना जाता है कि इनकी फाँसी की तिथि 24 मार्च निर्धारित थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार फाँसी के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से घबरा रही थी, इसीलिए उन्हें एक दिन पहले ही फाँसी दे दी गयी थी।

·         उनके पैतृक गाँव खेडा को अब राजगुरु नगरके नाम से जाना जाता है।

 शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् 1965 (विक्रमी) तदनुसार सन् 1908 में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था। 6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे।

वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।

23 मार्च 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया।

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