मीट्रिक पद्धति
(metric unit system या metric system)
मीट्रिक पद्धति (metric unit system या metric system) भौतिक राशियों के मापन में प्रयुक्त मात्रकों की
एक पद्धति है जिसमें मीटर लम्बाई की आधारभूत इकाई है। इस पद्धति की मुख्य विशेषता
यह है कि किसी भौतिक राशि के छोटे-बड़े सभी मात्रकों का अनुपात 10 या उसके किसी पूर्णांक घात (जैसे, 10-2, 10-5,
107, 109, 108 आदि) होता है। उदाहरण के लिये, मीटर और सेन्टीमीटर दोनों लम्बाई (दूरी) के
मात्रक हैं और एक मीटर 100 सेन्टीमीटर के बराबर होता है। इस प्रणाली का आरम्भ फ्रांस में सन 1799 में हुआ। इसके पहले प्रचलित अधिकांश प्रणालियों में एक ही भौतिक राशि के
विभिन्न मात्रकों में अनुपात 10 या 10
के किसी घात का होना जरूरी नहीं था। उदाहरण के लिये इंच और फुट दोनों लम्बाई के
मात्रक हैं और 1 फुट 12 इंच के बराबर
होता है। इंच, फुट, सेर, मील आदि गैर-मीट्रिक इकाइयाँ थीं।
इस प्रणाली का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस की क्रांति के प्रारंभिक दिनों (1791) में हुआ था। पिछले लगभग दो सौ वर्षों
में मीट्रिक पद्धति के कई रूप आये; जैसे मीटर-किलोग्राम-सेकेण्ड पद्धति और वर्तमान
में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत एसआई पद्धति आदि। इन सभी में केवल मूल
मात्रकों (फण्डामेंटल यूनिट्स) का अन्तर है किन्तु वस्तुत: वे सभी दशांश पद्धति का
ही पालन करतीं हैं। मीट्रिक पद्धति का वैज्ञानिक एवं तकनीकी कार्यों के लिये
बहुतायत में उपयोग किया जा रहा है। वर्तमान में केवल यूएसए, म्यांमार और लाइबेरिया को छोड़कर विश्व के सभी
देशों ने आधिकारिक रूप से मीट्रिक प्रणाली को अपना लिया है।
अंकों को दस चिन्हों के माध्यम से व्यक्त करने की प्रथा का प्रादुर्भाव
सर्वप्रथम भारत में ही हुआ था। संस्कृत साहित्य में अंकगणित को श्रेष्ठतम विज्ञान
माना गया है। लगभग पाँचवीं शताब्दी में भारत में आर्यभट्ट द्वारा अंक संज्ञाओं का
आविष्कार हुआ था। दशमिक प्रणाली द्वारा विभिन्न इकाइयों के मानों को निर्धारित
करने में दस का प्रयोग किया जाता है, अर्थात् इसके अंतर्गत प्रत्येक इकाई अपने से
छोटी इकाई की दस गुनी बड़ी होती है और अपने से ठीक बड़ी इकाई की दशमांश छोटी होती
है। इस प्रकार एक (इकाई), दस (दहाई), शत (सैकड़ा), सहस्त्र (हजार) इत्यादि संख्याओं को मापने के
उपयोग में लाया जाने लगा। गणित विषयक विभिन्न प्रश्न हल करने के लिए भारतीय
विद्वानों ने वर्गमूल, घनमूल और अज्ञात संख्याओं को मालूम करने के ढंग निकाले।
संख्याओं के छोटे भागों को व्यक्त करने के लिए दशमलव प्रणाली प्रयोग में आई।
वस्तुओं के मूल्यांकन में इस प्रणाली का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस की क्रांति
के प्रारंभिक दिनों में हुआ था और क्रांति के कुछ ही वर्षों बाद देश की समस्त माप
तौल दशमिक प्रणाली द्वारा होने लगी थी। इस प्रणाली की सुगमता से प्रभावित होकर कई
अन्य देशों ने भी इसे अपना लिया। बेल्जियम ने सन् 1833 और स्विट्ज़रलैंड ने सन् 1891 में इस
प्रणाली को अपनाया। जर्मनी, हॉलैंड, रूस और अमरीका पर भी इस प्रणाली का बहुत प्रभाव
पड़ा और इन देशों ने भी शीघ्र ही इस प्रकार की प्रणाली अपना ली। इस प्रणाली को
अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान करने के लिए 1870 ई. में फ्रांसीसी सरकार द्वारा एक सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इस प्रणाली को
अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने का सुझाव स्वीकार किया। धीरे धीरे संसार के लगभग भाग में
यह प्रणाली प्रयुक्त होने लगी। इस प्रणाली का सबसे बड़ा गुण इसी सुगमता है। इसका
मूल अंक 10 है। प्रत्येक माप या तौल में 10 या इसके दसवें भाग का प्रयोग होता है।
इस प्रणाली के अनुसार लंबाई मापने की इकाई मीटर है। इसी प्रकार द्रव्यमान की
इकाई किलोग्राम है और द्रव पदार्थ के पैमाने की इकाई लीटर है।
भारत में माप और तौल के जगह जगह कई प्रकार के ढंग थे। प्रत्येक प्रांत और मंडी
में अलग अलग ढंगों से चीजें मापी और तौली जाती थीं। अनुमान है कि देश में लगभग 150 से भी अधिक प्रकार के बाट और माप के
विभिन्न ढंग प्रचलित थे। इन कठिनाइयों से वस्तुओं का आदानप्रदान तथा उनका सही भाव
मालूम करना बड़ा कठिन हो जाता था। माप तौल की भिन्नता से वस्तुओं के घटते बढ़ते
भावों का ठीक अनुमान भी नहीं हो पाता। इससे व्यापार की बहुत क्षति हाती है और
क्रेता एवं विक्रेता दोनों को शंका रहती है। माप तौल की विधियों में एरूपता लाने
का ढंग भारत में कई बार सोचा गया, परंतु सितंबर, 1956 ई में ही बाट और माप प्रतिमान अधिनियम
पास हो सका। 28 दिसम्बर 1956 ई. को
उसपर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त होने पर केंद्रीय सरकार को दशमिक प्रणाली के
बाट और माप चलाने का अधिकार प्राप्त हुआ।
इस प्रणाली को अपनाने से सारे देश में एक ही प्रकार की माप और तौल के ढंग लागू
करने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो गया। इससे व्यापार और वस्तुओं के यातायात में
बड़ी सहायता मिली। दशमिक प्रणाली की सुगमता से माप और तौल के लेन देन का हिसाब भी
आसान हो गया। इस प्रणाली को देश में पूर्ण रूप से प्रचलित करने के लिए 10 वर्षों की अवधि निर्धारित की गई थी। इस
अवधि तक नई और पुरानी दोनों पद्धतियों से काम होता रहा और धीरे-धीरे पुरानी पद्धति
के स्थान पर नई पद्धति का प्रयोग बढ़ता गया।
मीट्रिक पद्धति का मूल रूप
7 अप्रैल 1795 में फ्रांस में एक कानून (18
Germinal, Year III) लागू हुआ जिसने
मापन में उपयोग के लिये निम्नलिखित पाँच इकाइयाँ परिभाषित कीं-
लम्बाई के लिये -- मीटर (mètre)
भूमि के क्षेत्रफल के लिये -- एयर (are = 100 वर्ग मीटर)
लकड़ी के आयतन के लिये -- स्टीरी (stère) (=1 घन मीटर)
द्रव के आयतन के लिये -- लीटर (litre)
द्रव्यमान के लिये -- ग्राम (gramme)
परिवर्ती रूप
समय के साथ मीट्रिक पद्धति के अनेक रूप सामने आये। इन सभी में मीटर और
किलोग्राम (या इनके दशांश) को आधारभूत (बेस) इकाई के रूप में लिया गया। किन्तु इन
परवर्ती पद्धतियों में व्युत्पन्न इकाइयों की अलग-अलग पारिभाषित की गयीं।
मीट्रिक पद्धति के कुछ प्रमुख परिवर्ती रूप ये हैं-
-
सेन्टीमीटर-ग्राम
-
सेकेण्ड पद्धति (CGS सिस्टम)
-
मीटर-किलोग्राम-सेकेण्ड पद्धति (MKS सिस्टम)
-
मीटर-टन-सेकेण्ड पद्धति (MTS सिस्टम)
-
मीटर-किलोग्राम-सेकेण्ड पद्धति (MKS सिस्टम)
-
गुरुत्वीय मीट्रिक पद्धति
-
अन्तरराष्ट्रीय इकाई प्रणाली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें