मदन लाल ढींगरा का जीवन परिचय:
(Biography of Madan Lal Dhingra)
मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान्
क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने
हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं
महान् शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है।
मदनलाल धींगड़ा (18 सितम्बर 1883 - 17 अगस्त 1909) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतंत्रता की चिनगारी को अग्नि में बदलने का
श्रेय महान शहीद मदन लाल धींगरा को ही जाता है । भले ही मदन लाल ढींगरा के परिवार
में राष्ट्रभक्ति की कोई ऐसी परंपरा नहीं थी किंतु वह खुद से ही देश भक्ति के रंग
में रंगे गए थे । वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन
वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। कर्जन वायली की हत्या
के आरोप में उन पर 22 जुलाई, 1909 का अभियोग चलाया गया । मदन
लाल ढींगरा ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि "मुझे गर्व है कि मैं अपना
जीवन समर्पित कर रहा हूं।" यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता
आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है।
आरम्भिक जीवन
मदनलाल धींगड़ा का जन्म 18 सितम्बर सन् 1883 को पंजाब प्रान्त के एक
सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और
अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय
संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब
मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से
निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को जीवन यापन के
लिये पहले एक क्लर्क के रूप में,
फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में
काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ)
बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने
मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त
करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी
अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके
बड़े भाई ने तो सहायता दी ही,
इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।
सावरकर के सान्निध्य में
लन्दन में धींगड़ा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक
दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आये। वे लोग धींगड़ा की
प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर ने ही
मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का
प्रशिक्षण दिया। मदनलाल धींगड़ा इण्डिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय
विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था। ये लोग उस समय
खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को
मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं
ने सावरकर और धींगड़ा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया।
कर्जन वायली को मारना
1 जुलाई सन् 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल
ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज
इकठे हुए। जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली अपनी
पत्नी के साथ हाल में घुसे,
ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं। उसके बाद धींगड़ा ने अपने
पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया।
अभियोग
23 जुलाई 1909 को धींगड़ा मामले की सुनवाई
पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और 17 अगस्त सन् 1909 को लन्दन की पेंटविले जेल
में फाँसी पर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। मदनलाल मर कर भी अमर हो गये।
मदन लाल ढींगरा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
(Important Facts Related to Madan Lal Dhingra)
- मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 फरवरी 1883 को अमृतसर में हुआ था।
- उनके पिता का नाम दित्तामल जी सिविल सर्जन थे, और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे।
- सन 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया था।
- जुलाई 1909 को मदनलाल ने एक समारोह में कर्जन वायली को गोली मार दी जिससे कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी थी।
- किसी भारतीय द्वारा ब्रिटेन में की गयी यह पहली राजनितिक हत्या मदनलाल ने की थी।
- अदालत ने 23 जुलाई 1909 को फांसी की सजा सुनाई थी।
- 17 अगस्त 1909 को 22 वर्ष का यह देशभक्त फाँसी पर लटका दिया गया था।
- इनका स्मारक अजमेर में रेलवे स्टेशन के ठीक सामने है।
- सन् 1992 में भारत सरकार द्वारा इनकी याद में डाक टिकट जारी किया गया।
- इन्होने नारा दिया था कि- ‘देश की पूजा ही राम की पूजा है‘।
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