गुरुवार, 13 अगस्त 2020

भीखाजी कामा: (Bhikaiji Cama)

भीखाजी कामा: (Bhikaiji Cama)

भीखाजी कामा एक महान महिला स्वतंत्रता सेनानी थी। जिन्होंने भारत के बाहर रहते हुए भी देश में आजादी की लढाई शुरू की थी. वे ऐसी प्रथम महीला स्वतंत्रता सेनानी है जिन्होंने इंटरनेशनल असेंबली में भारत का ध्वज लहराया था।

भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सुविख्यात हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।

उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित "वन्देमातरम्" पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि - ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।’’ उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया कि - ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।’’ यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में वन्देमातरम्अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं।

धनी परिवार में जन्म लेने के बावजूद इस साहसी महिला ने आदर्श और दृढ़ संकल्प के बल पर निरापद तथा सुखी जीवनवाले वातावरण को तिलांजलि दे दी और शक्ति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचे साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों से उपजे खतरों तथा कठिनाइयों का सामना किया। श्रीमती कामा का बहुत बड़ा योगदान साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व जनमत जाग्रत करना तथा विदेशी शासन से मुक्ति के लिए भारत की इच्छा को दावे के साथ प्रस्तुत करना था। भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ते हुए उन्होंने लंबी अवधि तक निर्वासित जीवन बिताया था।

तथ्यों के मुताबिक भीकाजी हालांकि अहिंसा में विश्वास रखती थीं लेकिन उन्होंने अन्यायपूर्ण हिंसा के विरोध का आह्वान भी किया था। उन्होंने स्वराज के लिए आवाज उठाई और नारा दिया− आगे बढ़ो, हम भारत के लिए हैं और भारत भारतीयों के लिए है।

भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनमें लोगों की मदद और सेवा करने की भावना कूट की कूट कर कर भरी थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके रोगियों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गए थे। इलाज के बाद वह ठीक हो गए थे लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। वर्ष 1902 में वह इसी सिलसिले में लंदन गए और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम जारी रखा।

वह तिरंगा जो मैडम कामा ने फहराया था, उसकी संगणक द्वारा निर्मित चित्र

भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वजभारत का पहला तिरंगा राष्ट्रध्वज को बुलंद किया था। उस सम्मेलन में उन्होंने भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त करने की अपील की थी। उनके तैयार किए गए झंडे से काफी मिलते हैं किए जुलते डिज़ायन को बाद में भारत के झंडे के रूप में अपनाया गया। राणाजी और कामाजी द्वारा निर्मित यह भारत का पहला तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा (राजेन्द्रसिंह राणा) के घर सुरक्षित गया है।

नाम

भीखाजी कामा

जन्म तिथि

24 सितम्बर 1861

जन्म स्थान

बम्बई, (भारत)

निधन तिथि

13 अगस्त 1936

उपलब्धि

भारत में प्रथम क्रान्तिकारी महिला

भीखाजी कामा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:

·         भीखाजी कामा का पूरा नाम भीकाजी रुस्तम कामा था।

·         मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे।

·         श्री रुस्तम के. आर. कामा के साथ उनका विवाह हुआ था।

·     मैडम कामा ने श्रेष्ठ समाज सेवक दादाभाई नौरोजी के यहां सेक्रेटरी के पद पर कार्य किया था।

·         मैडम भीकाजी कामा ने भारत का पहला झंडा फहराया, उसमें हरा, केसरिया तथा लाल रंग के पट्टे थे।

·         भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वजभारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज को बुलंद किया था।

·         भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा (राजेन्द्रसिंह राणा) के घर सुरक्षित रखा गया है।

·         श्रीमती कामा की लड़ाई दुनिया-भर के साम्रज्यवाद के विरुद्ध थी।

·         नके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की मातामानते थे।

13 अगस्त, 1936 को बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में गुमनामी की हालत में उनका देहांत हो गया।

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