(Atal Bihari Vajpayee)
जन्म |
25 दिसम्बर 1924 |
निधन |
16 अगस्त 2018 |
जन्म स्थान |
ग्वालियर, मध्य प्रदेश,
भारत |
पिता |
पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयी |
माता |
कृष्णा देवी |
पत्नि |
आजीवन अविवाहित |
कविता
संग्रह
• न दैन्यं न पलायनम्
• मेरी इक्यावन कविताएँ
प्रतिनिधि
रचनाएँ
• पंद्रह अगस्त की पुकार
• क़दम मिला कर चलना होगा
• हरी हरी दूब पर
• कौरव कौन, कौन पांडव
• दूध में दरार पड़ गई
• क्षमा याचना
• मनाली मत जइयो
• पुनः चमकेगा दिनकर
• अंतरद्वंद्व
• जीवन की ढलने लगी साँझ
• मौत से ठन गई
• मैं न चुप हूँ न गाता हूँ
• एक बरस बीत गया
• आओ फिर से दिया जलाएँ
• अपने ही मन से कुछ बोलें
• झुक नहीं सकते
• ऊँचाई
• हिरोशिमा की पीड़ा
• दो अनुभूतियाँ
• राह कौन सी जाऊँ मैं?
• जो बरसों तक सड़े जेल में
• मैं अखिल विश्व का गुरू महान
• दुनिया का इतिहास पूछता
• भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
• पड़ोसी से
• मृत्यु और हत्या
• अमर बलिदान
एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे 'भारत रत्न' अटल
बिहारी वाजपेयी अपने समर्थकों और विरोधियों में समान रूप से लोकप्रिय रहे।
अजातशत्रु वाजपेयी ने अपने कामकाज के तरीके से भारतवासियों पर गहरी छाप छोड़ी।
प्रारंभिक जीवन : भारत के पूर्व
प्रधानमंत्री एवं कुशल वक्ता 'भारत रत्न' अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर के शिंदे का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था। उनके
पिता पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी
घरेलू महिला थीं। अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। उनसे बड़े तीन भाई और
तीन बहनें थीं।
अटलजी के बड़े भाइयों को अवधबिहारी वाजपेयी, सदाबिहारी वाजपेयी तथा
प्रेमबिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है। अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और
प्रतिभा संपन्न थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिर, गोरखी, बाड़ा, विद्यालय में
हुई। यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। जब वे पांचवीं कक्षा
में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था।
उन्हें विक्टोरिया कॉलेज में दाख़िल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक
की पढ़ाई की। इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग
लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (जिसे अब लक्ष्मीबाई
कॉलेज के नाम से जाना जाता है) से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। स्नातक परीक्षा
में उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत में विशेष
योग्यता (डिस्टिंक्शन) हासिल की थी।
कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों
में भाग लेना आरंभ कर दिया था। आरंभ में वे छात्र संगठन से जुड़े। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित
किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया।
कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। वे कॉलेज जीवन से ही
राजनीति में सक्रिय भाग लेते रहे।
ग्वालियर से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वे
कानपुर चले गए। यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होंने कला
में राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। इसके बाद
वे पी-एचडी करने के लिए लखनऊ चले गए। पढ़ाई के साथ-साथ वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
के कार्य भी करने लगे, परंतु वे पी-एचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके क्योंकि पत्रकारिता
से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था।
उस समय 'राष्ट्रधर्म' नामक समाचार पत्र पंडित दीनदयाल
उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से प्रकाशित हो रहा था। तब अटलजी इसके सह सम्पादक के
रूप में कार्य करने लगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार पत्र का संपादकीय स्वयं
लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे। 'राष्ट्रधर्म'
समाचार पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया। ऐसे में इसके लिए स्वयं की
प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था।
कुछ समय के पश्चात भारत प्रेस से मुद्रित होने
वाला दूसरा समाचार पत्र 'पांचजन्य'
भी प्रकाशित होने लगा। इस समाचार पत्र का संपादन पूर्ण रूप से अटलजी
ही करते थे। 15 अगस्त, 1947 को देश
स्वतंत्र हो गया। कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई। इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया। इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया,
क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र
में थी।
भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद
चले गए। यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य
करना आरंभ कर दिया, परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वे पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में 'स्वदेश'
दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होने लगा, परंतु
हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया। इसलिए वे दिल्ली से प्रकाशित होने वाले
समाचार पत्र 'वीर अर्जुन' में कार्य
करने लगे। यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था। वीर अर्जुन
का संपादन करते हुए उन्होंने कविताएं लिखना भी जारी रखा।
अटलजी को जनसंघ के सबसे पुराने व्यक्तियों में एक
माना जाता है। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने
भारतीय जनसंघ का गठन किया था। यह राजनीतिक विचारधारा वाला दल था। वास्तव में इसका
जन्म संघ परिवार की राजनीतिक संस्था के रूप में हुआ। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी
इसके अध्यक्ष थे। अटलजी भी उस समय से ही इस दल से जुड़ गए। वे अध्यक्ष के निजी
सचिव के रूप में दल का कार्य देख रहे थे।
भारतीय जनसंघ ने सर्वप्रथम 1952 के लोकसभा चुनाव में भाग लिया,
तब उसका चुनाव चिह्न दीपक था। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ को कोई
विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई, परंतु इसका कार्य जारी रहा।
उस समय भी कश्मीर का मामला अत्यंत संवेदनशील था।
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अटलजी के साथ जम्मू
और कश्मीर के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया, परंतु सरकार ने इसे सांप्रदायिक
गतिविधि मानते हुए डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जहां 23 जून, 1953 को जेल में
ही उनकी मृत्यु हो गई।
अब भारतीय जनसंघ का काम अटलजी प्रमुख रूप से
देखने लगे। 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ को चार स्थानों पर विजय प्राप्त हुई।
अटलजी प्रथम बार बलरामपुर (लखनऊ के पास) सीट से विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। वे
इस चुनाव में 10 हजार मतों से विजयी हुए थे। उन्होंने तीन
स्थानों से नामांकन पत्र भरा था। बलरामपुर के अलावा उन्होंने लखनऊ और मथुरा से भी
नामांकन पत्र भरे थे, परंतु वे शेष दो स्थानों पर हार गए।
मथुरा में वे अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए और लखनऊ में साढ़े बारह हज़ार मतों से
पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
उस समय किसी भी पार्टी के लिए यह आवश्यक था कि वह
कम से कम तीन प्रतिशत मत प्राप्त करे अन्यथा उस पार्टी की मान्यता समाप्त की जा
सकती थी। भारतीय जनसंघ को छह प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस चुनाव में हिन्दू
महासभा और रामराज्य परिषद जैसे दलों की मान्यता समाप्त हो गई, क्योंकि उन्हें तीन प्रतिशत मत
नहीं मिले थे।
उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। 1962 के लोकसभा चुनाव में वे पुन:
बलरामपुर क्षेत्र से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी बने, परंतु
उनकी इस बार पराजय हुई। यह सुखद रहा कि 1962 के चुनाव में
जनसंघ ने प्रगति की और उसके 14 प्रतिनिधि संसद पहुंचे। इस
संख्या के आधार पर राज्यसभा के लिए जनसंघ को दो सदस्य मनोनीत करने का अधिकार
प्राप्त हुआ। ऐसे में अटलजी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्यसभा में भेजे गए।
आपातकाल का समय और काव्य रचना : फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में अटलजी पुन: बलरामपुर की सीट से प्रत्याशी बने और उन्होंने
विजय प्राप्त की। उन्होंने 1972 का लोकसभा चुनाव अपने गृहनगर
अर्थात ग्वालियर से लड़ा था। उन्होंने बलरामपुर संसदीय चुनाव का परित्याग कर दिया
था। उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने
जून, 1975 में आपातकाल लगाकर विपक्ष के कई नेताओं को जेल में
डाल दिया था। इनमें अटलजी भी शामिल थे।
उन्होंने जेल में रहते हुए समयानुकूल काव्य की
रचना की और आपातकाल के यथार्थ को व्यंग्य के माध्यम से प्रकट किया। जेल में रहते
हुए ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में
भर्ती कराया गया। लगभग 18 माह के बाद आपातकाल समाप्त हुआ।
संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिन्दी में संबोधन : 1977 में लोकसभा चुनाव हुए, परंतु आपातकाल के कारण
इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं। विपक्ष द्वारा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्वकाल
में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटलजी विदेश मंत्री बनाए गए। उन्होंने कई देशों
की यात्राएं कीं और भारत का पक्ष रखा। 4 अक्टूबर,
1977 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिन्दी में
संबोधन दिया।
इससे पूर्व किसी भी भारतीय नागरिक ने हिन्दी का
प्रयोग इस मंच पर नहीं किया था। जनता पार्टी सरकार का पतन होने के पश्चात् 1980 में नए चुनाव हुए और इंदिरा
गांधी पुन: सत्ता में आ गईं। इसके बाद 1996 तक अटलजी विपक्ष
में रहे।
1980
में भारतीय जनसंघ के नए स्वरूप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ
और इसका चुनाव चिह्न कमल का फूल रखा गया। उस समय अटलजी ही भारतीय जनता पार्टी के
शीर्ष नेता थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् 1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव हुए, परंतु अटलजी
ग्वालियर की अपनी सीट से पराजित हो गए। मगर 1986 में उन्हें
राज्यसभा के लिए चुन लिया गया।
13
मार्च, 1991 को लोकसभा भंग हो गई और 1991
में फिर लोकसभा चुनाव हुए। फिर 1996 में पुन:
लोकसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में
उभरी। संसदीय दल के नेता के रूप में अटलजी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 21 मई, 1996 को प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ
ग्रहण की।
13
दिन की सरकार : 31 मई, 1996 को उन्हें अंतिम रूप से बहुमत सिद्ध करना था, परंतु
विपक्ष संगठित नहीं था। इस कारण अटलजी मात्र 13 दिनों तक ही
प्रधानमंत्री रह सके। इसके बाद वे अप्रैल, 1999 से अक्टूबर 1999
तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। 1999 के
लोकसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और 13 अक्टूबर,
1999 को अटलजी ने प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ
ली। इस प्रकार वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया।
मिले ये सम्मान
पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले
अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्र के प्रति उनकी
समर्पित सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया। वर्ष 1993 में कानपुर
विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि प्रदान की। उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया। वर्ष 1994
में उन्हें श्रेष्ठ सांसद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से
सम्मानित किया गया। इसी वर्ष 27 मार्च, 2015 को उन्हें 'भारत रत्न' पुरस्कार
से सम्मानित किया गया।
सम्पूर्ण राजनैतिक यात्रा
पूर्व प्रधानमंत्री और 'भारत रत्न' अटल
बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो चार
राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और
बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश
के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले
वाजपेयी इकलौते नेता हैं।
वर्ष 1952
में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा,
पर सफलता नहीं मिली। वे उत्तरप्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए
उपचुनाव में उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा
था।
अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में मिली थी। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा
और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा
में उनकी ज़मानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से
चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे।
वाजपेयी के असाधारण व्यक्तित्व को देखकर उस समय
के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह
व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा।
वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे,
लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने
गए। बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव
हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने।
इसके बाद 1968 में वाजपेयी जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ
नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता
थे।
1971
में पांचवें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश के
ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए
चुनाव में 1977 और फिर 1980 के
मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
1984
में अटलजी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा
दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया,
जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से
वाजपेयी पौने दो लाख वोटों से हार गए।
वाजपेयीजी ने एक बार जिक्र भी किया था कि
उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो
चुनाव नहीं लड़ेंगे। माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत
अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया। इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि
दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते। ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना
पड़ा।
इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य
प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते। बाद में उन्होंने
विदिशा सीट छोड़ दी।
1996
में हवाला कांड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर
से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ
गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद वाजपेयी ने
लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना ली। व़े 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लखनऊ सीट से जीतकर सांसद बने।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में
जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में
विदेश मामलों के मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे
जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया।
इसके बाद जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई
और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता
पार्टी से जुड़ गए। वाजपेयी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और वे कांग्रेस
सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे।
1994 में कर्नाटक 1995 में गुजरात और महाराष्ट्र में
पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने
वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था।
वाजपेयीजी 1996
से लेकर 2004 तक तीन बार प्रधानमंत्री बने। 1996
के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और
वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों
में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई।
1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य
पार्टियों के सहयोग से वाजपेयीजी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री
बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन
बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया, जिसके
चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर
से सत्ता में आई और इस बार वाजपेयीजी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
काव्य रचनाएं और पुस्तकें : 'मेरी इक्यावन कविताएं'
अटलजी का प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। वाजपेयीजी को काव्य रचनाशीलता
का गुण विरासत में मिला। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने
समय के जानेमाने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। अटलजी
के संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियां, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के
प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पाई।
विख्यात गज़ल गायक जगजीतसिंह ने अटलजी की चुनिंदा
कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एलबम भी निकाला था। अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें कैदी कविराय की कुंडलियां,
न्यू डाइमेंशन ऑफ एशियन फॉरेन पॉलिसी, मृत्यु
या हत्या, जनसंघ और मुसलमान, मेरी
इक्यावन कविताएं, मेरी संसदीय यात्रा (चार खंड), संकल्प-काल एवं गठबंधन की राजनीति सम्मिलित हैं।
अटलजी को इस बात का बहुत हर्ष था कि उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ। वे कहते थे- 25
दिसंबर! पता नहीं कि उस दिन मेरा जन्म क्यों हुआ? बाद में बड़ा होने पर मुझे यह बताया गया कि 25 दिसंबर
को ईसा मसीह का जन्मदिन है, इसलिए बड़े दिन के रूप में मनाया
जाता है। मुझे यह भी बताया गया कि जब मैं पैदा हुआ, तब पड़ोस
के गिरजाघर में ईसा मसीह के जन्मदिन का त्योहार मनाया जा रहा था। कैरोल गाए जा रहे
थे। उल्लास का वातावरण था। बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी। बाद में मुझे यह भी
पता चला कि बड़े दिन पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का भी जन्मदिन है। मुझे जीवनभर
इस बात का अभिमान रहा कि मेरा जन्म ऐसे महापुरुषों के जन्म के दिन ही हुआ।
अटलजी की सरकार के प्रमुख कार्य :
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एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।
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संरचनात्मक ढांचे के लिए कार्यदल, सॉफ्टवेयर
विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण
में गति लाने के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।
-
राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढांचे
को मजबूत करने वाले कदम उठाए।
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राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति,
व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।
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आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतें नियंत्रित करने के लिए
मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया।
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उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिए सात सूत्रीय गरीबी उन्मूलन
कार्यक्रम शुरू किया।
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आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त
किया।
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ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के
लिए बीमा योजना शुरू की।
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