बुधवार, 17 जून 2020

आज का दिन 17 जून

                                
   विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस

विश्वभर में 17 जून 2014 को विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस (डब्ल्यूडीसीडी) मनाया गया.

संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा गया जिसका अनुमोदन दिसम्बर 1996 में किया गया। वहीं 14 अक्टूबर 1994 को भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूएनसीसीडी) पर हस्ताक्षर किये। जिसके पश्चात् वर्ष 1995 से मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए यह दिवस मनाया जाने लगा।

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस के अवसर पर तीन मुख्य बातों के द्वारा मरुस्थलीकरण को रोकने के प्रयासों को प्रसारित किया जाता है। इनमें से पहला है- भूमि के अपरदन को रोकना। इसके अन्तर्गत जनमानस को जल सुरक्षा, खाद्यान्न सुरक्षा के साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति जागरुक किया जाता है। दूसरा महत्वपूर्ण कदम सूखे के प्रभाव को प्रत्येक स्तर पर कम करने के लिए कार्य करना है, इसके तहत राहत कार्य के साथ-साथ भावी रणनीति बनाकर उस पर कार्य किया जाता है।

विकट परिस्थिति का एक रूपः-

थार के मरुस्थल में प्रतिवर्ष 13000 एकड़ से अधिक भूमि की वृद्धि दर्ज की जा रही है। कुछ वर्षों बाद सहारा रेगिस्तान के क्षेत्रफल में भी एक ऐसी ही बड़ी बढ़ोतरी हो जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक रेगिस्तान के फैलते दायरे के चलते आने वाले समय में अन्न की कमी पड़ सकती है। विदित है कि आज प्रति मिनट 23 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो रही है जिसके परिणामस्वरूप हर साल खाद्यान्न उत्पादन में दो करोड़ टन की कमी आ रही है। गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक-चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है। खाद्यान्न उत्पादन के अधीन नई भूमि लाना संभव नहीं होता है और जो भूमि बची है, वह भी तेजी से क्षरित हो रही है, उदाहरण के लिए मध्य एशिया का गोबी मरुस्थल से उड़ी धूल उत्तर चीन से लेकर कोरिया तक के उपजाऊ मैदानों को खत्म कर रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक बढ़ते मरुस्थलीकरण के कारण 2025 तक दुनिया के दो-तिहाई लोग जल संकट की परिस्थितियों में रहने को मजबूर होंगे। ऐसे में मरुस्थलीकरण के चलते विस्थापन बढ़ेगा। नतीजतन 2045 तक करीब 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा सकता है।

भारत भी नहीं अछूताः-

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मरुस्थलीकरण भारत की प्रमुख समस्या बनती जा रही है। दरअसल इसकी वजह करीब 30 फीसदी जमीन का मरुस्थल में बदल जाना है। उल्लेखनीय है कि इसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा केवल आठ राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी ‘‘स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019‘‘ की रिपोर्ट के मुताबिक 2003-05 से 2011-13 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 हेक्टेयर तक बढ़ चुका है। वहीं सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण में बदल चुका है। ध्यान योग्य बात है कि वर्ष 2003-05 से 2011-13 के बीच नौ जिले में मरुस्थलीकरण 2 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। भारत का 29.32 प्रतिशत क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है। इसमें 0.56 प्रतिशत का बदलाव देखा गया है। गौरतलब है कि गुजरात में चार जिले ऐसे हैं, जहाँ मरुस्थलीकरण का प्रभाव देखा जा रहा है, इसके अलावा महाराष्ट्र में 3 जिले, तमिलनाडु में 5 जिले, पंजाब में 2 जिले, हरियाणा में 2 जिले, राजस्थान में 4 जिले, मध्य प्रदेश में 4 जिले, गोवा में 1 जिला, कर्नाटक में 2 जिले, केरल में 2 जिले, जम्मू कश्मीर में 5 जिले और हिमाचल प्रदेश में 3 जिलों में मरुस्थलीकरण का प्रभाव है।

निदान के प्रयासः-

कुछ सुझावों को अमल में लाया जा सकता है। धरती पर वन सम्पदा के संरक्षण के लिए वृक्षों को काटने से रोका जाना चाहिए इसके लिए सख्त कानून का प्रावधान किया जाना चाहिए। साथ ही रिक्त भूमि पर, पार्कों में सड़कों के किनारे व खेतों की मेड़ों पर वृक्षारोपण कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर चलाया जाए। जरूरत इस बात की भी है कि इन स्थानों पर जलवायु अनुकूल पौधों-वृक्षों को उगाया जाए। मरुस्थलीकरण से बचाव के लिए जल संसाधनों का संरक्षण तथा समुचित मात्रा में विवेकपूर्ण उपयोग काफी कारगर भूमिका अदा कर सकती है। इसके लिए कृषि में शुष्क कृषि प्रणालियों को प्रयोग में लाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

मरुस्थलीकरण को रोकने में सिंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि पेड़-पौधे और वनस्पतियां लगाने तथा उनके विकास में सिंचाई बड़ी उपयोगी साबित होती है। इसके लिए सिंचाई के साधनों का ऐसे स्थानों पर प्रयोग किये जाने पर बल दिया जाना चाहिए। मरुभूमि की लवणता व क्षारीयता को कम करने में वैज्ञानिक उपाय को महत्व दिया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वतः उत्पन्न होने वाली अनियोजित वनस्पति के कटाई को नियंत्रित करने के साथ ही पशु चरागाहों पर उचित मानवीय नियंत्रण स्थापित करना चाहिए। मरुस्थलीकरण व सूखा से मुकाबला करने के लिए विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस, वैश्विक स्तर पर जन-जागरूकता फैलाने का ऐसा प्रयास है , जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की अपेक्षा की जाती है। विश्व बंधुत्व की भावना के साथ इसमें भागीदारी सुनिश्चित करना धरती तथा पर्यावरण को बचाने में सार्थक प्रयास साबित हो सकता है।

वर्ष
घटना/वारदात/वृत्तांत
1596
डच खोजकर्ता विलेम बारेंट्ज़ ने स्पिट्सबर्गेन के आर्कटिक द्वीपसमूह की खोज की।
1631
बच्चे के जन्म के दौरान मुमताज़ महल का निधन। उनके पति, मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अगले 17 साल में ताज महल का निर्माण करवाया।
1673
फ्रांसीसी खोजकर्ता जैक्स मार्क्वेट और लुई जोलीट मिसिसिपी नदी तक पहुंचे और अपनी यात्रा का विस्तृत विवरण बनाने वाले पहले यूरोपीय बने।
1767
सैमुअल वालिस, एक ब्रिटिश समुद्री कप्तान, ताहिती के द्वीप पर पहुंचने वाले पहले यूरोपीय माने जाते हैं।
1858
1857 के भारतीय स्वतत्रंता संग्राम की नायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई शहीद हुई।
1885
फ्रांस का तोहफा स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी न्यूयॉर्क के बंदरगाह पर पहुंचा। स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी न्यूयॉर्क के हार्बर में लायी गयीl
1910
ऑरेल व्लाइको पायलट ने ए व्लिकु 1 विमान में अपनी पहली उड़ान भरी। ए व्लिकु 1 पहला हवाई जहाज था जिसे ऑरेल व्लाइको द्वारा बनाया गया था।
1944
आइसलैंड ने डेनमार्क से स्वतंत्रता की घोषणा की और एक गणराज्य बन गया।
चीन, हाइड्रोजन बम से संपन्न दुनिया का चौथा देश बना।
शिकागो में पहली बार किडनी प्रत्यारोपण का ऑपरेशन हुआ।
1985
जॉन हेन्ड्रिक्स ने संयुक्त राज्य अमेरिका में डिस्कवरी चैनल शुरू किया।
1985
स्पेस शटल कार्यक्रम: एसटीएस-51-जी मिशन: स्पेस शटल डिस्कवरी ने पेलोड स्पेशलिस्ट से सुल्तान बिन सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद को लेकर उङान भरी यह अंतरिक्ष यान अरब देश का पहला यान था और इससे अंतरिक्ष में जाने वाले दोनो पहले मुस्लिम बने।
1987
अंतिम सांवली समुद्र तटीय गौरैया की मृत्यु हुई, इसी के साथ इसकी प्रजाति विलुप्त हो गई।
1991
रंगभेद: दक्षिण अफ्रीकी संसद ने जनसंख्या पंजीकरण अधिनियम को निरस्त कर दिया, जिसमें जन्म के समय सभी दक्षिण अफ्रीकीयों को नस्लीय वर्गीकरण विवरण की आवश्यकता थी।

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